मध्यप्रदेश सहित धार जिले में इस बार बेहतर बारिश हुई है। इसी के परिणामस्वरूप गेहूं का रकबा अधिक रहेगा। इन सबके बीच में एक सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है कि इस दौरान पानी का बेहद दोहन कहीं न कहीं चिंता का विषय हो सकता है। भले ही इस साल पर्याप्त से अधिक बारिश हुई हो। यदि अधिक मात्रा में पानी का उपयोग किया जाता है तो वह एक बार फिर धरती में बरसों बाद जो पानी रीचार्ज हुआ है, उसको पूर्ण रूप से खत्म करने की स्थिति बना देगा। इसलिए अभी से किसानों को इस बात की समझाइश दी जा रही है कि वह पांच बार सिंचाई यानी पानी में पकने वाली गेहूं की किस्म बोने की बजाए कम से कम पानी में पकने वाली किस्मों की बोवनी करें। तीन पानी इसके लिए पर्याप्त है। इससे उत्पादन बेहतर भी रहेगा और हम धरती को आने वाले वर्ष के लिए पानी का भंडार सुरक्षित रखने के लिए एक अच्छा उदाहरण भी दे पाएंगे।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश सहित आदिवासी बहुल धार, झाबुआ, आलीराजपुर में भी इस बार बेहतर बारिश हुई है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बार गेहूं की बंपर पैदावार होगी। सारी परिस्थिति अनुकूल हुई तो गेहूं का उत्पादन इस बार जबरदस्त होगा। इसके लिए किसान भी अपना मन बना चुके हैं। अभी से किसान बोवनी की तैयारी कर रहे हैं। इतना ही नहीं इसके लिए बीजों का भी चयन करना शुरू कर दिया है। इन सबके बीच में यह बात सामने आई है कि धरती की गहराई में जो पानी है, उसका अति दोहन करके कई वर्षों के लिए जो जल संग्रहण या भंडारण हुआ है, उसको खत्म करने की स्थिति नहीं बने। वैसे भी कम पानी की किस्म का उपयोग किया जाता है तो वर्तमान जलवायु परिवर्तन के दौर में बेहतर रहेगा।
इस संबंध में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक व प्रभारी डॉ. केएस किराड़ ने बताया कि यदि एक बार में सिंचाई की जाती है तो उसमें 1 सेंटीमीटर तक जमीन को गीला करना होता है। यानी इतनी मोटी परत को पानी से नमी युक्त करना बेहद जरूरी हो जाता है। इसमें प्रति हेक्टेयर करीब 5 लाख लीटर पानी की आवश्यकता होती है। एक हेक्टेयर में ही बड़ी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। अब जबकि जिले में इस बार पानी की अधिकता होने के कारण गेहूं का रकबा करीब 2 लाख 50 हजार हेक्टेयर रहेगा। जबकि गत वर्ष 1 लाख 80 हजार हेक्टेयर गेहूं का रकबा था। इस तरह से सीधे तौर पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि करीब 70 हजार हेक्टेयर में गेहूं की बोवनी अधिक होगी।
डॉ. किराड़ ने बताया कि किसानों की यह सोच रहती है कि अधिक मात्रा में पानी उपलब्ध होने के लिहाज से ऐसी किस्मों को लगाया जाए जिससे कि वे अधिक पकत ले सकें। उन्होंने कहा कि उसकी वजह किसानों को पानी बचाने के साथ-साथ मौसम के अनुकूल अपनी खेती का ध्यान रखना होगा। यदि वे तीन पानी में पकने वाली किस्मों पर फोकस करते हैं तो बेहतर रहेगा। इसके लिए जरूरी है कि किसान ऐसी वैरायटी का उपयोग करें जो वर्तमान में खोजी गई है। उन्होंने कहा कि यदि किसान पांच पानी में पकने वाली गेहूं की किस्म लेते हैं तो इसका मतलब है कि उन्हें हर स्तर पर बोझ पड़ेगा। वह धरती से अधिक मात्रा में पानी लेंगे। जबकि किसानों को अधिक मात्रा में खाद की आवश्यकता लगेगी। इसके अलावा बिजली की भी उन्हें अधिक जरूरत पड़ेगी। इस बार पानी की उपलब्धता है। इसलिए चने का रकबा निश्चित रूप से कम होगा। क्योंकि किसान बेहतर उत्पादन के लिए गेहूं की ओर ही जाएंगे। यदि हम अपनी धरती की गहराई में पानी जो संग्रहित हुआ है, उसे बचाने की दिशा में भी ध्यान देंगे तो निश्चित रूप से यही पानी आगे आने वाले समय में काम आएगा। इससे अन्य फसलों और अन्य स्तर पर भी लाभ मिल सकता है।
डॉ. किराड़ ने बताया कि तीन पानी में पकने वाली किस्में बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं। इसके अलावा शासकीय स्तर पर भी उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि पूजा तेजस जैसी वैरायटी का उपयोग किया जा सकता है। जो कि बेहतर श्रेणी का बीज है। जिसकी बाजार में काफी मांग रहती है। इससे सूजी और दलिया बनता है। इसके अलावा भी गेहूं की और भी कई महत्वपूर्ण किस्में हैं। जिनका उपयोग करके किसान बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकता है। उन्होंने कहा कि जल है तो कल है की अवधारणा को यहां पर हमें लागू करना होगा। तभी जाकर हम अच्छी स्थिति प्राप्त कर सकेंगे।
चने का रकबा कम होगा
कृषि विभाग के उपसंचालक केएस जामरे ने बताया कि जिले में इस बार गेहूं का रकबा अधिक रहेगा। जबकि चने का रकबा कम रहेगा। उन्होंने कहा कि जिस तरह से अधिक बारिश हुई है। उसके मद्देनजर किसान इस तरह की उम्मीद रखते हैं कि इस बार ओला पाला की स्थिति बन सकती है। ठंड अधिक रहने के कारण चने की फसल जलने जैसे हालात बनते हैं। इसलिए किसानों को इस बार चने की बजाय गेहूं के प्रति विशेष रुचि रहेगी। इसके आधार पर लक्ष्य निर्धारित कर लिए गए हैं। उन्होंने कहा कि हम किसानों से यही आग्रह कर रहे हैं कि वे 3 किस्मों में और कम से कम पानी में पकने वाली फसलों के प्रति रुझान रखें।
खास-खास
-4 लाख हेक्टेयर में होगी रबी फसल की बोवनी।
-प्रति हेक्टेयर एक सेमी मोटाई तक जमीन को सिंचित करने में लगता है 5 लाख लीटर पानी।
-दो हजार करोड़ लीटर एक बार सिंचाई में लगेगा पानी।
-पांच बार पानी देकर पकने वाली किस्म के कारण लगेगा 10 हजार करोड़ लीटर पानी।
-3 पानी में पैदावार लेकर बचा सकते हैं 4 हजार करोड़ लीटर पानी।
ये भी देखे