युवा महिला किसान ने समझा शिक्षा का महत्व, पति की अधूरी शिक्षा में किया सहयोग
जिला खरगोन के टेमला की ज्योति के रसोई घर में आज खाने के लिए बाहर की कोई भी सामग्री नहीं लायी जाती है।
उसकी रसोई में उसके खेत की ही पूरी तरह जैविक सामग्री अपनाई जाती है। आज वे आत्मनिर्भर और आदर्श कृषक के रूप में जानी जाती हैं।
ज्योति के कृषक बनने के इस सफर की शुरूआत के हालात
ज्योति के बाबूजी का 2011 में गले के कैंसर के कारण देहांत हो गया था। भाई की बचपन में ही मृत्यु हो चुकी।
इसके बाद बाबूजी की मृत्यु के समय ही ज्योति ने जहरयुक्त खेती छोड़ जैविक खेती करने का निर्णय कर लिया था।
इसके बाद माँ और बेटी ने मिलकर कुछ वर्षों तक घर के खाने के लिए जैविक खेती प्रारम्भ कर दी।
सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर कर चुकीं ज्योति ने धीरे-धीरे जैविक खेती का ज्ञान संग्रहित किया और 5 एकड़ में जैविक खेती प्रारम्भ कर दी।
वर्ष 2019 में गांव टेमला के ही नौजवान कड़वा पाटीदार से ज्योति का विवाह हो गया। अब ससुराल और मायके दोनों की बखूबी जिम्मेदारी संभालने लगीं।
ससुराल आते ही जैविक खेती का फार्मूला देकर पति के साथ किसानी के कार्य में जुट गईं।
अब ससुराल और मायके दोनों की बखूबी जिम्मेदारी संभालने लगी। ससुराल आते ही जैविक खेती का फार्मूला देकर पति के साथ किसान बन गई।
लेकिन 2020 में माँ भी ब्लड कैंसर के कारण चल बसी। ज्योति उदास रहने लगी तो पति सहारा बने और एक दूसरे के सहयोग से आगे बढ़ने लगे।
नतीजतन आज ज्योति के रसोई घर में उसके खेत की ही पूरी तरह जैविक सामग्री अपनाई जाती है।
स्त्रोत : जनसंपर्क विभाग
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