गर्मियों में प्याज की खेती
अधिकतर किसान गर्मियों में प्याज की खेती करते हैं इस दौरान प्याज की फसल को विशेष देखरेख की आवश्यकता रहती है।
गर्मियों में प्याज की खेती के लिए आवश्यक बातों को इस लेख में बताया जाएगा।
अगेती आलू की खेती करने वाले अधिकांश किसान आलू की खुदाई के पश्चात ग्रीष्मकालीन प्याज की फसल करते हैं।
कम लागत और कम समय में तैयार होने वाली प्याज किसानों के लिए बेहतर नकदी फसल है।
जनवरी से फरवरी के अंतिम सप्ताह लगाई गई प्याज की फसल अप्रैल अंत तक पक कर तैयार हो जाती है।
अप्रैल माह के समय प्याज की पत्तियां अच्छी तरह सूख जाती हैं और अच्छी तरह सूखा हुआ प्याज अधिक समय भंडारित होता है।
गर्मियों में प्याज की खेती में सिंचाई इस प्रकार करें
प्याज की फसल में सिंचाई की आवश्यकता मृदा की किस्म, फसल की अवस्था व ऋतु पर निर्भर करती है।
पौध रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें तथा उसके दो-तीन दिन बाद फिर हल्की सिंचाई करें जिससे की मिट्टी में नम बनी रहे व पौध अच्छी तरह से जम जाए।
प्याज की फसल में 10-12 सिंचाई पर्याप्त होती है। कन्द बनते समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए।
बहुत अधिक सिंचाई करने से बैंगनी धब्बा रोग लगने की सम्भावना हेाती है जबकि अधिक समय तक खेत में सूखा रहने की स्थिति में कन्द फटने की समस्या आ सकती है।
खुदाई से 15 दिन पहले सिंचाई बन्द कर देना चाहिए।
निराई-गुड़ाई का ध्यान रखें
फसल को खरपतवार से मुक्त रखने के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करके खरपतवार को निकालते रहना चाहिए।
इसके अतिरिक्त खरपतवारनाशी जैसे स्टाम्प 30 ईसी का तीन लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के दो-तीन दिन बाद छिड़काव करें।
खड़ी फसल में यदि सकरी पत्ती वाले नींदा अधिक हो तो क्वीजालोफॉप ईथाइल 5 ईसी के 400 मि.ली/हेक्टर के मान से करें।
खुदाई जब 50 प्रतिशत पौधों की पत्तियां पीली पड़कर मुरझाने लगे तब कंदों की खुदाई शुरू कर देना चाहिए।
इसके पहले या बाद में कंदों की खुदाई करने से कंदों की भण्डारण क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
उपज रबी फसलों से औसतन 250-300 क्विंटल/हेक्टेयर तक उपज प्राप्त होती है।
प्याज की खेती के रोग नियंत्रण
थ्रिप्स
ये कीट पत्तियों का रस चूसते हैं जिसके कारण पत्तियों पर चमकीली चांदी जैसी धारियां या भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं।
ये बहुत छोटे पीले या सफेद रंग के कीट होते हैं जो मुख्य रूप से पत्तियों के आधार या पत्तियों के मध्य में घूमते हैं।
इसके नियंत्रण हेतु नीम तेल आधारित कीटनाशियों का छिड़काव करें या इमीडाक्लोप्रि कीटनाशी 17.8 एस.एल. दवा की मात्रा 125 मिली./हे. 500-600 लीटर पानी मंे मिलाकर छिड़काव करें।
माइट
इस कीट के प्रकोप के कारण पत्तियों पर धब्बों का निर्माण हो जाता हैं और पौधे बौने रह जाते हैं।
इसके नियंत्रण हेतु 0.05ः डाइमेथोएट दवा का छिड़काव करें।
बैंगनी धब्बा (परपल ब्लाॅच)
बैंगनी धब्बा नामक फफूंदी जनित रोग हैं, इस रोग का प्रकोप दो परिस्थितियों में अधिक होता हैं पहला अधिक वर्षा के कारण दूसरा पौधों को अधिक समीप रोपने से पत्तियों पर बैंगनी रंग के धब्बे बन जाते हैं।
परिणामस्वरूप पोधों की बढ़वार एवं विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं।
इसके लक्षण दिखाई देने पर मेनकोजेब (2.5 ग्रा./ली. पानी) का 10 दिन के अन्तराल से छिड़काव करें।
इन फफूंदनाशी दवाओं में चिपकने वाले पदार्थ जैसे सैन्उो विट, ट्राइटोन या साधारण गोंद अवश्य मिला दें जिससे घोल पत्तियों पर प्रभावी नियंत्रण हेतु चिपक सकें।
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