चने की खेती
चने की खेती शुष्क और ठंडी जलवायु में की जाती है.
देश में अक्टूबर-नवंबर का महीना चने के बीजों की बुवाई के लिए सबसे अच्छा माना जाता है.
पौधों की बढ़िया वृद्धि के लिए 20-30 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त रहता है.
चना एक सबसे महत्वपूर्ण दलहनी फसल मानी जाती है.
चने के पौधे की हरी पत्तियां साग और हरा सूखा दाना सब्जियां बनाने में प्रयुक्त होता है.
चने के दाने से अलग किए हुए छिलके को पशु चाव से खाते हैं.
चने की फसल आगामी फसलों के लिए मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिर करती है, इससे खेत की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है.
देश में सबसे अधिक चने की खेती मध्य प्रदेश में की जाती है.
भूमि की तैयारी
चने की खेती दोमट और बुलई मिट्टी में आसानी से की जा सकती है.
खरीफ फसल की कटाई के बाद खेत में हैरो से गहरी जोताई कर दें.
चने की खेती के लिए खेत में नमी रहना आवश्यक है.
कृषि विशेषज्ञ बुवाई के लिए मिट्टी का pH मान 6-7.5 को उपयुक्त मानते हैं.
एक जोताई मिट्टी पलटने वाले हल और 2 जोताई देसी हल से करने के बाद खेत में पाटा लगाकर समतल कर दें.
प्रमुख किस्में
कृषि विशेषज्ञ सीजन में समय पर बुवाई के लिए जीएनजी 1581 (गणगौर), जीएनजी 1958(मरुधर), जीएनजी 663, जीएनजी 469, आरएसजी 888, आरएसजी 963, आरएसजी 963, आरएसजी 973, आरएसजी 986 को श्रेष्ठ मानते हैं.
देरी से बुवाई के लिए जीएनजी 1488, आरएसजी 974, आरएसजी 902, आरएसजी 945 प्रमुख हैं.
इसके अतिरिक्त राधे, उज्जैन, वैभव भी देशी चना की उन्नत किस्में मानी जाती हैं.
मौसम खेती के लिए अनुकूल रहने पर सामान्यतः चने की फसल 100-120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है.
काबुली चना की प्रमुख किस्में
कृषि विशेषज्ञ एल500, सी-104, काक-2, जेजीके-2, मैक्सिकन बोल्ड को काबुली चने की प्रमुख किस्म मानते हैं.
यह किस्में एक हेक्टेयर में यह 10-13 क्विंटल पैदावार देतीं हैं.
बीजों का उपचार
खेत में बीजों की बुवाई से पहले रासायनिक फफूंदीनाशक से उपचारित कर लें.
फसल को उकठा रोग से बचाने के लिए वीटावैक्स पॉवर, कैप्टॉन, थीरम या प्रोवेक्स में से किसी एक का 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करें.
इसके पश्चात एक किलोग्राम बीज में राइजोबियम कल्चर और ट्राइकोर्डमा विरडी 5-5 ग्राम मिलाकर उपचारित करें.
इस प्रक्रिया के लिए सीड ड्रेसिंग ड्रम का इस्तेमाल कर सकते हैं.
बिना देरी करते हुए अब इन बीजों को तैयार खेत में 5-8 सेंटीमीटर की गहराई पर बुवाई कर दें.
रासायनिक विधि से करें खरपतवार नियंत्रण
फ्लूक्लोरेलिन 200 ग्राम का बुवाई से पहले या पैंडीमेथालीन 350 ग्राम का बीजों के अंकुरण से पहले लगभग 300 लीटर पानी में घोल बना लें.
अब इसका प्रति एकड़ चने के खेत में छिड़काव करें.
खेती कर रहे किसान पहली निराई-गुड़ाई बीज बुवाई के 30-35 दिनों बाद करें.
इतने ही अंतराल पर दूसरी निराई-गुड़ाई कर सकते हैं.
सिंचाई की सही विधि
देखा जाए तो सामान्यतः चने की खेती असिंचित अवस्था में की जाती है.
चने की फसल के लिए कम जल की आवश्यकता होती है.
किसान पहली सिंचाई पौधे से फूल आने के पूर्व मतलब बीज बुवाई के 20-30 दिन बाद और दूसरी सिंचाई दाना भरने की अवस्था यानी 50-60 दिनों के बाद कर सकते हैं.
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