अपनाएं ये उपाय
गेहूं का सही उत्पादन हासिल करने के लिए फसल के प्रबंधन पर ध्यान देना चाहिए.
समय-समय पर फसल की निगरानी, पोषण की जांच और इसी के हिसाब से खाद, उर्वरक, कीटनाशकों के छिड़काव पर ध्यान देना चाहिए.
गेहूं दुनिया की प्रमुख खाद्यान्न फसल है. भारत में गेहूं की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, जिस पर देश की खाद्य सुरक्षा टिकी है, लेकिन जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां के बीच गेहूं का उत्पादन कम होता जा रहा है.
इन चुनौतियों से निपटने के लिए समय पर फसल का प्रबंधन करने की सलाह दी जाती है. यदि ये समझ लें कि फसल क्या जरूरतें हैं तो नुकसान को काफी हद तक कम कर सकते है.
यही वजह है कि अब कृषि वैज्ञानिक भी समय-समय पर कृषि से जुड़ी एडवायजरी जारी करते हैं, जिसमें किसानों को फसल में पोषण प्रबंधन के लिए खाद-उर्वरकों का इस्तेमाल और कीट-रोग की निगरानी के लिए सही दवा के छिड़काव के बारे में जानकारी दी जाती है.
खासतौर पर इस समय जब गेहूं की फसल बढ़वार पर है तो इन सभी कामों को सही तरीके से समय पर पूरा करके गेहूं की फसल की सही उत्पादकता हासिल कर सकते हैं.
कैसे करें पोषण प्रबंधन
इस समय गेहूं फसल बढ़वार है.
पौधों से लेकर जड़ों के सही विकास और बालियों से अच्छी उत्पादकता के लिए फसल पर एक तिहाई नाइट्रोजन का बुरकाव कर सकते हैं.
इन दिनों आयरन और जिंक की कमी के लक्षण गेहूं की फसल की पत्तियों पर नजर आने लगते हैं.
इन कमियों को पूरा करने के लिए 1 किलो जिंक सल्फेट और 500 ग्राम बुझा हुआ चूना 200 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़क सकते हैं.
यदि पत्तियों पर लक्षण ज्यादा नजर आ रहे हैं तो पोषण की आपूर्ति के विए कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर हर 15 दिन में भी 2-3 बार इस घोल का छिड़काव करना लाभकारी रहेगा.
मिट्टी की जांच के आधार पर यदि खेत में मैगनीज की कमी है तो एक किलो मैगनीज सल्फेट को 200 लीटर पानी में साथ मिश्रण बनाके पहली सिंचाई से 2-3 दिन पहले फसल पर छिड़क सकते हैं.
चाहें तो विशेषज्ञों की सलाह पर आयरन सल्फेट के 0.5% घोल को धूप निकलने पर फसल पर छिड़काव करना भी फायदेमंद रहेगा.
इस तरह करें सिंचाई
कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि गेहूं की फसल को पककर अच्छी तरह तैयार होने में 35 से 40 लीटर पानी की आवश्यकता होती है.
सिंचाई का काम फसल की नमी के अनुसार करना चाहिए.
सर्दियों में पाले से गेहूं की फसल को बचाने के लिए शाम के समय हल्क सिंचाई का काम कर सकते हैं.
फसल में बालियां और जड़ों के विकास के लिए भी समय-समय पर सूक्ष्म सिंचाई करने की सलाह दी जाती है.
यदि बुवाई के समय सिंचाई हुई थी तो हर 20-25 दिन में हल्का पानी लगा दें.
गेहूं की देर से बुवाई वाली फसल में 18-20 दिन और पछेती गेहूं में हर 15 से 20 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई का काम कर लें.
खतरपतवार निकालना ना भूलें
क्या आप जानते हैं कि खेतों में फसल के साथ कई अनावश्यक पौधे भी उग जाते हैं. इन्हें खरपतवार कहते हैं, जो धीरे-धीरे फसल से सारा पोषण सोखकर कीट-रोगों को आकर्षित करते हैं.
इन खरपतवारों के कारण फसल में 40% तक नुकसान हो जाता है.
यदि आप फसल की सही उत्पादकता और सुरक्षित उपज चाहते हैं तो सिंचाई से पहले खरपतवार प्रबंधन करना ना भूलें.
इसके लिए हर कुछ दिन के अंतराल पर निराई-गुड़ाई का काम कर करते रहें, जिससे जड़ों में भी ऑक्सीजन की आपूर्ति होगी और फसल अच्छी तरह से विकसित हो जाएगी.
यदि फसल में खरपतवारों का प्रकोप अधिक है तो इनकी रोकथाम के लिए कई एक्सपर्ट्स की सलाह पर हर्बीसाइड का स्प्रे भी कर सकते हैं.
सल्फो-सल्यूरॉन भी एक प्रभावी हर्बीसाइड है, जिसकी 13 ग्राम मात्रा को 120 लीटर पानी में घोलकर सिंचाई से पहले फसल पर छिड़क सकते हैं.
कीट-रोगों का नियंत्रण
इन दिनों गेहूं की फसल में रतुआ रोग का प्रकोप नजर आने लगता है.
खासतौर पर उत्तर पश्चिमी और मैदानी इलाकों में इस बीमारी से फसल नष्ट होने का खतरा रहता है.
रतुआ रोग की रोकथाम के लिए हमारे वैज्ञानिक लगातार प्रयासरत हैं.
भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल (हरियाणा) ने भी गेहूं में रतुआ रोग की रोकथाम के लिए नई तकनीक इजाद की है, जिसका परीक्षण भी सफ साबित हो चुका है.
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