खेती में रिस्क लेकर नई तकनीक का उपयोग करने वाले युवा किसान अब पारंपरिक फसलों से मुंह मोड़ रहे हैं।
अमरूद, नींबू, पपीता, संतरे की खेती के साथ ठंडे प्रदेशों वाली स्ट्रॉबेरी तक पैदा कर रहे हैं, वह भी रिकॉर्ड गर्मी वाले निमाड़ में।
साथ ही अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं। स्मार्ट किसान में हम इस सप्ताह बात रहे हैं, खंडवा के 25 किलोमीटर दूर जलकुआं गांव के युवा किसान शिवपाल सिंह पंवार की।
उन्होंने खेत की मेढ़ से लगी महज 2500 स्क्वेयर फीट जमीन में स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाएं।
लागत सिर्फ 5 हजार की और मुनाफा 20 हजार का। वे बताते हैं कि मुनाफे की यह रकम दो बीघा के गेहूं-चना जितनी है।
मुनाफा दो बीघा के गेहूं-चने की फसल जितना
शिवपाल सिंह ने पहली बार स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की है।
वे क्षेत्र के जैविक और उन्नतशील किसान हैं, इसलिए सरकार का कृषि विभाग भी उन्हें हर समय मदद करता है।
कृषि विभाग की आत्मा परियोजना ने ही उन्हें स्ट्रॉबेरी के 1100 पौधे फ्री में उपलब्ध कराएं थे।
स्ट्रॉबेरी के पौधे का बाजार मूल्य 10 से 15 रुपए तक है।
लोकल मार्केट नहीं है, इंदौर मंडी भेजते हैं स्ट्रॉबेरी
किसान शिवपाल का कहना है कि स्ट्रॉबेरी की बिक्री के लिए लोकल मार्केट नहीं है।
यहां के व्यापारी भी बाहर से माल बुलाते हैं। फसल कम दायरे में है तो ठीक है, वरना स्ट्रॉबेरी को बेचने के लिए इंदौर मंडी ही उपयुक्त है।
वहां इसके खरीदार व्यापारी अलग से आते हैं। अच्छा भाव मिल जाता है।
पहले कोई खरीदार फिक्स नहीं था, फिर हमने एक लोकल व्यापारी से संपर्क किया तो उसने हमें बताया कि हमें कैसे पैकिंग करके बेचना है।
इसके बाद हमने स्ट्रॉबेरी को घर पर ही 200-200 ग्राम की पैकिंग शुरू की और थोक में बेचने लगे।
थोक में किसान को 40 रुपए प्रति पैकेट यानी 200 रुपए किलो तक भाव मिल जाता है।
इस खेती ने इतिहास, समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र बदल दिया
शिवपाल सिंह बताते हैं कि इंटरनेट पर खेती-किसानी से जुड़ी फ्री की सलाह उपलब्ध है।
स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की तो खेती के नए आयामों से जुड़ा हूं। मैंने पारंपरिक सोयाबीन, कपास की खेती करना छोड़ दी है।
सिर्फ मुनाफे के लिए मिर्ची और राशन इतना जैविक गेहूं लेता हूं। इससे खेती का इतिहास बदल गया है।
दूसरी ओर अर्थशास्त्र की बात करें तो स्ट्रॉबेरी एक नकदी फसल है।
हर दो दिन के अंतराल में उपज निकलती है, उसे तत्काल मार्केट में बेचना पड़ता है। हमारी उत्पादन क्षमता के हिसाब से हमें दो दिन के अंतराल में 2 हजार रुपए तक आमदनी हो जाती है।
इससे खरीफ सीजन की अन्य फसलों में खाद-दवाओं की पूर्ति हो जाती है। यहां तक की घर का राशन भी आ जाता है।
समय पर नकद पैसा जेब में रहता है, समय रहते फसलों पर दवा-खाद का छिड़काव हो जाता है। साहूकारों से कर्ज लेने की नौबत नहीं आती है।
समाज शास्त्र के बारे में शिवपाल सिंह कहते है कि, नई तकनीक के साथ खेती करों तो उसका आनंद कुछ और ही रहता है।
स्ट्रॉबेरी की खेती करने में मुझे बहुत मजा आ रहा है। परिवार और रिश्तेदार भी काफी खुश हैं।
गांव के लोग खेत की मेढ़ तरफ झांकते तक नहीं थे। अब स्ट्रॉबेरी की खेती देखने के लिए लोग खेत आते हैं।
रिश्तेदार भी पूछते हैं, कितना मुनाफा हुआ। मैं 12वीं पास हूं, रिश्तेदारों ने सलाह दी थी कि इंदौर-पीथमपुर चले जाओ, वहां नौकरी करो, लेकिन गांव में रहकर खेती का स्वरूप बदला। आज समाज में अलग पहचान है।
मल्चिंग पद्वति से खेती बेहतर, मिल जाता है केंचुआ खाद
किसान शिवपाल सिंह ने स्ट्रॉबेरी के लिए मल्चिंग पद्वति को बेहतर बताया है।
इसके लिए खेत तैयार होने के बाद पौधे लगाने के लिए बेड बनाते हैं और उस बेड को पॉलीथीन से कवर करते है।
पॉलीथीन का खर्च प्रति एकड़ तीन से चार हजार रुपए तक होता है। हमें तो महज एक हजार रुपए की पॉलिथीन लगी थी।
बाकी, फसल में जितना खाद दिया जाए, उतना कम है। मैंने मिर्च की फसल में जाे फॉर्मूला चलाया, वहीं स्ट्रॉबेरी की फसल में उपयोग किया।
स्ट्रॉबेरी के पौधों में ड्रिप से ही खाद छोड़ा गया। दूसरा, केंचुआ खाद उपयोगी होता है।
गांव में सरकारी प्रयोगशाला है, जहां से केंचुआ खाद आसानी से सस्ते रेट पर मिल जाता है।
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