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गेंहू की बंपर पैदावार के लिए यह जरूरी सलाह

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जानें.. गेहूं की बंपर फसल (Bumper crop of wheat) के लिए कृषि वैज्ञानिकों की सिफारिशें.

 

कृषि वैज्ञानिकों की सिफारिशें

गेंहू की फसल लगभग 35 से 50 दिनों की हो गई है।

ऐसे में यदि गेंहू की उचित देखभाल नहीं की तो, जाहिर सी बात है गेंहू की पैदावार पर इसका असर देखने को मिलेगा। ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के कुछ जरूरी सिफारिश की है।

जानें.. गेहूं की बंपर फसल (Bumper crop of wheat) के लिए कृषि वैज्ञानिकों की सिफारिशें…

 

बीज दर और बुवाई की विधि

बीज दर दानों के आकार, जमाव प्रतिशत बोने का समय, बोने की विधि एवं भूमि की दशा पर निर्भर करती है।

सामान्यतः यदि 1000 बीजों का भार 38 ग्राम है तो एक हेक्टेयर के लिये लगभग 100 कि.ग्रा. बीज की आवश्यकता होती है।

यदि दानों का आकार बड़ा या छोटा है तो उसी अनुपात में बीज दर घटाई या बढ़ाई जा सकती है।

इसी प्रकार सिंचित क्षेत्रों में समय से बुआई के लिये 100 कि.ग्रा./हे. बीज पर्याप्त होता है।

विभिन्न परिस्थितियों में बुआई Bumper crop of wheat हेतु फर्टी-सीड ड्रिल (बीज एवं उर्वरक एक साथ बोने हेतु), जीरो-टिल ड्रिल (जीरोटिलेज या शून्य कर्षण में बुआई हेतु), फर्ब ड्रिल (फर्ब बुआई हेतु) आदि मशीनों का प्रचलन बढ़ रहा है।

इसी प्रकार फसल अवशेष को बिना साफ किए हुए अगली फसल के बीज बोने के लिये रोटरी-टिल ड्रिल भी उपयोग में लाई जा रही है।

 

उर्वरकों की मात्रा एवं उनका प्रयोग

गेहूं उगाये जाने वाले ज्यादातर क्षेत्रों में नत्रजन की कमी पाई जाती है। फास्फोरस तथा पोटाश की कमी भी क्षेत्र विशेष में पाई जाती है।

पंजाब, मध्यप्रदेश, राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में गंधक Bumper crop of wheat की कमी पाई गई है।

सी प्रकार सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जस्ता, मैगनीज तथा बोरान की कमी गेहूं उगाये जाने वाले क्षेत्रों में देखी गई है।

इन सभी तत्वों को भूमि में मृदा परीक्षण को आधार मानकर आवश्यकता अनुसार प्रयोग करें।

लेकिन ज्यादातर किसान विभिन्न कारणों से मृदा परीक्षण नहीं करवा पाते हैं। ऐसी स्थिति में गेहूं के लिये संस्तुत दर निम्न हैं।

असिंचित दशा में उर्वरकों को कूड़ों में बीजों से 2-3 से.मी. गहरा डाले तथा बालिया आने से पहले यदि पानी बरस जाए तो 20 किग्रा है. नत्रजन को टॉप ड्रेसिंग के रूप में दे।

 

गेंहू में एनपीके का इस्तेमाल

सिंचित दशाओं में फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की 1/3 मात्रा बुवाई से पहले भूमि में अच्छे से मिला दे नाईट्रोजन 2/3 मात्रा प्रथम सिंचाई के बाद तथा शेष आधा तृतीय सिंचाई के बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में दे धान, मक्का एवं कपास के बाद गेहूं लेने वाले क्षेत्रों में जस्ता, गंधक, मैगनीज एवं बोरान की कमी की संभावना होती है तथा कुछ क्षेत्रों में इसके लक्षण भी देखे गए हैं।

ऐसे क्षेत्रों में अच्छी पैदावार के लिये इनका प्रयोग आवश्यक हो गया है।

 

सल्फर (गंधक) का प्रयोग

गंधक की कमी को दूर करने के लिये गंधक युक्त उर्वरक जैसे अमोनियम सल्फेट अथवा सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग अच्छा रहता है।

जस्ते की कमी वाले क्षेत्रों में जिंक सल्फेट 25 कि.ग्रा./हे. की तथा 500 ग्रा. बुझा हुआ चूना 200 ली. पानी में घोलकर 2-3 छिड़काव करें।

इसके बाद आवश्यकतानुसार एक सप्ताह के अंतर पर 2-3 छिड़काव साफ मौसम एवं खिली हुई धूप में करें।

 

पौध संरक्षण

गेहूं की फसल में बथुआ, कडबथुआ, कडाई, जंगली पालक, सिटिया घास / गुल्ली डंडा, प्याजी जंगली जई आदि खरपतवार पाये जाते हैं।

इनके उन्मूलन के लिये कस्सी कसोला से निराई गुड़ाई करें अधिक मात्रा में खरपतवार होने पर निम्नलिखित खरपतवारनाशी का प्रयोग करें।

 

गुल्ली डंडा जंगली जई के लिए दवाई

गुल्ली डंडा जंगली जई के लिए 500 ग्राम आइसोप्रोट्यूरान (ऐरिलान, टोरस, रक्षक, आइसौगार्ड) या 160 ग्राम टोपिक / पोईट 120 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 35-45 दिन के बाद स्प्रे करें। कडाई या अन्य चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के विनाश के लिये मैटसल्फ्यूरान (एलग्रिप एलगो, हुक) 8 ग्राम / एकड़ की दर से बिजाई के 30-35 दिन बाद सप्रे करें।

 

जस्ते की कमी

हल्की भूमि में जस्ते की कमी होने पर नीचे से तीसरी या चौथी पुरानी पत्ती के मध्य में हल्के पीले धब्बे दिखाई देते हैं।

ऐसे लक्षण होने पर 5 किग्रा यूरिया और एक किया जिंक सल्फेट 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

 

बीमारियां एवं रोकथाम हेतु सलाह

गेहूं की फसल में पीला, भूरा या काला रतुआ दिसम्बर, जनवरी/फरवरी में कम तापक्रम होने से आता है।

रोगरोधी किस्मों के अलावा 800 ग्राम डाइथेन एम-45 का 250 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दें।

ममनी, टुण्डू, रोग या मोल्या रोग नियंत्रण हेतु 6 कि.ग्रा. टैमिक 10जी या 13 कि.ग्रा. फ्यूराडान 3 जी /एकड़ बिजाई के समय दें।

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