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आदर्श सोयाबीन कृषि कार्यमाला

आदर्श सोयाबीन कृषि कार्यमाला

भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान , इंदौर ने 22 से 28 जून  की समयावधि के लिए सोयाबीन किसानों को कोरोना के चलते आवश्यक सावधानियां बरतने जैसे खेती का कार्य करते समय 4 से अधिक व्यक्तियों को इकट्ठा न करने ,दो मीटर की दूरी बनाए रखने,बुखार अथवा सर्दी खांसी से पीड़ित व्यक्ति को डॉक्टर की सलाह देने,अपने चेहरे पर मास्क /गमछा /रुमाल या कपड़ा लगाने ,हाथों में मोज़े पहनने , मादक पदार्थ और तम्बाकू का सेवन न करने के साथ ही 20  सेकंड तक अपने हाथ साबुन से अच्छी तरह धोने की सलाह  दी है ।

 

भूमि का चुनाव और तैयारी : यह सभी प्रकार की भूमि में (बहुत रेतीली जमीन छोड़कर) पैदा की जा सकती है । काली मिट्टी मिश्रित, काली, चिकनी, दोमट मिट्टी जिसमे जल निकास अच्छा हो इस फसल के लिए उपयुक्त है ।

 

बीज का चुनाव : सोयाबीन की जिस जाती ने क्षेत्र में अधिक पैदावार की हो उसी का चयन करे।  वर्षा की अनिश्चितता को देखते हुए कृषको को चाहिए की वे अपना सोयाबीन का पूरा रकबा एक हि के अंतर्गत न बोये ।

 

उन्नत किश्मे : जे.एस. 335, जे.एस. 9305, जे.एस. 9560, जे.एस. 2029, जे.एस. 2034, जे.एस. 2069, जे.एस. 2098, 

 

बोने क समय : 15 जून से 5 जुलाई | साधारणतया सोयाबीन की बोवनी जून के तीसरे सप्ताह या जुलाई के पहले सप्ताह तक करना उपयुक्त रहता है.इसलिए किसानों को सलाह है कि उगी हुई फसल को नमी से बचाने के लिए 4  इंच वर्षा होने के बाद ही बोवनी करें ।

 

बीज की मात्रा: पिली सोयाबीन 30 से 40 किलो प्रति एकड़ तथा काला सोयाबीन 15 से 20 किलो प्रति एकड़ बोये।

 

बीज बोने की विधि : मानसून आते ही बोवाई करे | क़तर से कतार की दुरी 30 से 45 से. मी. पौधे से पौधे की दुरी 4 से 5 से. मी. बीज को 3 से 4 से. मी. की गहरे पर बोये ।

 

खाद की मात्रा : बोते समय 20 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो सुपर, 20 किलो पोटाश और 20 किलो गंधक देवे | खाद बीज से 5 से 7 से. मी. नीचे देना चाहिये | पिली सोयाबीन की अच्छी पैदावार के लिए मिश्रित उर्वरक 8.325 मात्रा 40 किलो प्रति एकड़ उपयोग करे तथा कलि सोयाबीन के  लिए 4 किलो नत्रजन एवं 17 किलोग्राम सुल्फर उपयोग करे | जिस क्षेत्र की मिट्टी में गंधक की कमी से उस क्षेत्र में गंधक युक्त उर्वरक उपयोग करना चाहिए या जिप्सम का उपयोग करे।

 

बीज उपचार : 1 किलो बीज 2.5 ग्राम थायरम से उपचारित करे | उपचारित बीज को रायजोरियम कल्चर 10 ग्राम प्रति किलो के हिसाब से बोनी के ठीक पूर्व छाव में सुखाकर बोनी के 6 घंटे पूर्व कर लेना चाहिए।

 

निंदाई : अधिक उत्पादन के लिए फसल को 45 दिन तक खरपतवार से मुक्त रखे | इसके लिए एक से दो बार हाथ से निंदाई एवं दो बार कुलपा चलाकर खरपतवार नष्ट करे ।

 

सिंचाई : फुल एवं फलियों में दाना बनते समय जमीं में नमी आवश्यक है। इन अवश्थाओ में वर्षा नही होने पर सिंचाई आवश्यक है। जब बारिश ना हो और दाना पकने की अवस्था में हो तो सिंचाई कर देना चाहिए।

 

कीट नियंत्रण : निम्न में से किसी एक कीटनाशक दवाई का एक या दो बार छिडकाव करे।

0.1% प्रोफेनोफास 50 EC

0.05% मोनोक्रोटोफ़ोस 36 EC

0.04% क्विनालफास 25 EC

 

पौध संरक्षण : कीड़ो के आक्रमण होते ही रोकथाम हेतु दवा छिडकाव चाहिए।

  1. तने की मक्खी : फसल बोने के 30 से 40 दिन बाद इन्डोसल्फान (थायोट्रान) 25 ई.सी. का 600 मिली. प्रति एकड़ के हिसाब से छिडकाव करे अथवा पेराथियम डस्ट 2 प्रतिशत को 10 किलो मात्र/एकड़ के हिसाब से छिडकाव करे।
  2. रायेदार इल्लीयां, सुरंग बनाए वाली इल्ली छोटे काले व भूरे रंग का मृग पत्तियों को चिपकाने वाली थेसिड्स आदि की रोकथाम हेतु रोमर 30 ई.सी. 250 से 300 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ छिडकाव करे अथवा पैराथीयाँ (फलिडाल) 2 प्रतिशत चूर्ण क 10 किलो एकड़ छिडकाव करे |  20 से 30 दिन बाद आवश्यकतानुसार उपरोक्त दवाओ का उपयोग पुनः दोहराए।

 

बीमारियाँ – पत्तियों का धब्बा रोग : थायरम व डाईथेंन एम-४५ बीज को उपचारित करे तथा खड़ी फसल में एम-४५ का 400 ग्राम 300 ली. पानी में घोल तैयार कर छिडकाव करे।

 

कटाई : जब पौधो की पत्तिया पिली हो जाये या गिर जाये तथा 80% से 90% भूरी हो जाये तो तुरंत फसल की कटाई कर लेना चाहिए। दानो में 14% से 16% नमी रहने तक कटाई करे।

 

गहाई : थ्रेशर अच्छी तरह से साफ करने के बाद गहाई करे।

 

विशेष : थैली में रखी दवाई से बीज को अच्छी तरह उपचारित कर ही बोयें | मेड एवं नाली (रिज एवं फरो) पद्धति से ही बोवाई करे | यदि फसल की बढवार बहुत अधिक हो तो बोने के 40 से 45 दिन में लिओसिन का एक स्प्रे अवश्य करे।

 

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