तीनों कृषि कानून वापस लेगी सरकार
प्रकाश पर्व के मौके पर किसानों के लिए बड़ी खबर आई है, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने तीनों विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी है|
तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ किसान लगातार आन्दोलन कर रहे थे | इस वर्ष 26 नवंबर को किसान आंदोलन के एक साल पूरे होने वाले हैं|
किसानों की लंबी लडाई के बाद आखिरकार मोदी सरकार ने इसे वापस लेने का निर्णय लिया है|
राष्ट्र को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने गुरु नानक जयंती के अवसर पर लोगों को बधाई दी।
उन्होंने कहा कि किसानों की स्थिति को सुधारने के इसी महा-अभियान में देश में तीन कृषि कानून लाये गये थे।
इसका मकसद यह था कि किसानों को, खासकर छोटे किसानों को और ताकत मिले, उन्हें अपनी उपज की सही कीमत तथा उपज बेचने के लिये ज्यादा से ज्यादा विकल्प मिलें।
प्रधानमंत्री ने कहा कि वर्षों से यह मांग देश के किसान, कृषि विशेषज्ञ और किसान संगठन लगातार करते रहे हैं।
पहले भी कई सरकारों ने इस पर मंथन किया है। इस बार भी संसद में चर्चा हुई, मंथन हुआ और ये कानून लाये गये। देश के कोने-कोने में, अनेक किसान संगठनों ने इसका स्वागत किया और समर्थन दिया।
प्रधानमंत्री ने इस कदम का समर्थन करने के लिये संगठनों, किसानों और लोगों को आभार व्यक्त किया।
इस महीने के अंत में निरस्त हो जायंगे कृषि कानून
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि ‘‘हमारी सरकार, किसानों के कल्याण के लिए, खासकर छोटे किसानों के कल्याण के लिए, देश के कृषि जगत के हित में, देश के हित में, गांव गरीब के उज्जवल भविष्य के लिए, पूरी सत्य निष्ठा से, किसानों के प्रति समर्पण भाव से, नेक नीयत से ये कानून लेकर आई थी।’’
उन्होंने आगे कहा, “इतनी पवित्र बात, पूर्ण रूप से शुद्ध, किसानों के हित की बात, हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाए।
कृषि अर्थशास्त्रियों ने, वैज्ञानिकों ने, प्रगतिशील किसानों ने भी उन्हें कृषि कानूनों के महत्व को समझाने का भरपूर प्रयास किया।
उन्होंने कहा कि, “आज मैं आपको, पूरे देश को, ये बताने आया हूं कि हमने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है।
इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में, हम इन तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे।”
किसान मोर्चा ने क्या कहा
संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है, “संयुक्त किसान मोर्चा इस निर्णय का स्वागत करता है और उचित संसदीय प्रक्रियाओं के माध्यम से घोषणा के प्रभावी होने की प्रतीक्षा करेगा।
अगर ऐसा होता है, तो यह भारत में एक वर्ष से चल रहे किसान आंदोलन की ऐतिहासिक जीत होगी। हालांकि, इस संघर्ष में करीब 700 किसान शहीद हुए हैं।
लखीमपुर खीरी हत्याकांड समेत, इन टाली जा सकने वाली मौतों के लिए केंद्र सरकार की जिद जिम्मेदार है।
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