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गाजर घास के नियंत्रण के लिए 22 अगस्त तक जागरूकता सप्ताह

गाजर घास एक बहुत ही हानिकारक खरपतवार है। गाजर घास इंसानों के साथ ही पशुओं के लिए भी हानिकारक है। गाजर घास से पशुओं और इंसानों को कई रोग हो सकते हैं।

जिसको देखते हुए भा.कृ.अनु.प.-खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर के समन्वय में गाजरघास जागरूकता सप्ताह 16 से 22 अगस्त 2024 के दौरान पूरे देश में उन्नीसवें गाजरघास जागरूकता सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है।

जिसके तहत गाजर घास को खत्म करने के लिए जागरूक किया जाएगा।

 

गाजर घास क्या है?

गाजर घास (पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस) जिसे आमतौर पर सफेद टोपी, असाड़ी, गजरी, चटक चांदनी आदि नामों से जाना जाता है, एक विदेशी आक्रामक खरपतवार है।

भारत में पहली बार 1950 के दशक में दृष्टिगोचर होने के बाद यह विदेशी खरपतवार रेलवे ट्रेक, सड़कों के किनारे, बंजर भूमि, उद्यान आदि सहित लगभग 35 मिलियन हेक्टेयर फसलीय और गैरफसलीय क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है।

यह एक वर्षीय शाकीय पौधा है, जिसकी लंबाई 1.5 से 2.0 मीटर तक होती है। यह मुख्यतः बीजों से फैलता है।

यह एक विपुल बीज उत्पादक है और इसमें लगभग 5,000 से 25,000 बीज प्रति पौधा पैदा करने की क्षमता होती है।

बीज अपने कम वजन के कारण हवा, पानी और मानवीय गतिविधियों द्वारा आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच जाते हैं।

 

मनुष्यों के साथ ही पशुओं के लिए भी हानिकारक है गाजर घास

गाजरघास को सबसे अधिक खतरनाक खरपतवारों में गिना जाता है क्योंकि यह मनुष्यों और पशुओं में त्वचा रोग (डरमेटाइटिस), अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसे स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है।

इसके सेवन से पशुओं में अत्यधिक लार और दस्त के साथ मुंह में छाले हो जाते हैं।

स्वादहीन होने के कारण इसका उपयोग पशुओं के चारे के रूप में नहीं किया जा सकता है, साथ ही घास के मैदानों, चारागाहों और वन क्षेत्रों में इसके फैलने से चारे की उपलब्धता धीरे-धीरे कम होती जा रही है।

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ऐसे करें गाजर घास का नियंत्रण

गाजर घास एक जनमानस की समस्या है, इसलिए इसे नियंत्रित करने के लिए किसानों, नगर पालिकाओं, कॉलोनी वासियों, गैर सरकारी संगठनों, स्कूली बच्चों आदि सहित समाज के सभी वर्गों के द्वारा सामुदायिक पहल की आवश्यकता है ताकि वे अपने आसपास को गाजर घास से मुक्त रख सकें।

गाजर घास के दुष्प्रभाव एवं इसके प्रबंधन के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए बैठकें, प्रशिक्षण, प्रदर्शन आदि आयोजित करें।

फूल आने से पहले इस खरपतवार को उखाड़कर कम्पोस्ट या वर्मी कम्पोस्ट बना लें।

गाजर घास को विस्थापित करने के लिए चकोड़ा (पंवार) गेंदा जैसे स्व-स्थायी प्रतिस्पर्धी पौधों की प्रजातियों के बीज का छिड़काव करें।

गाजर घास के संपूर्ण वनस्पति नियंत्रण के लिए ग्लाइफोसेट (1.0-1.5 प्रतिशत) जैसे शाकनाशी का छिड़काव करें और मिश्रित वनस्पति में पार्थेनियम के नियंत्रण हेतु मेट्रिब्यूजिन (0.3-0.5 प्रतिशत) या 2, 4 डी (1.0-1.5 प्रतिशत) का छिड़काव उसमें फूल आने से पहले करें, ताकि घास कुल के पौधों का बचाया जा सके।

फसलों में शाकनाशियों के प्रयोग से पहले खरपतवार/विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य कर लेना चाहिए। जुलाई-अगस्त के दौरान गाजरघास संक्रमित क्षेत्रों में जैविक कीट जाइगोग्रामा बाइकोलोराटा को छोड़ें।

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