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गन्ना किसानों के लिए आई बड़ी खुशखबरी

 

सरकार ने बढ़ाया गन्ने का दाम

 

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार गन्ने का एफआरपी यानी फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस बढ़ा दिया है.

इसको लेकर कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है.

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में गन्ने की FRP 5 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाने को मंजूरी मिली है.

बीते दिनों खाद्य मंत्रालय ने इसको लेकर कैबिनेट नोट जारी किया था.

आपको बता दें कि बीते सीजन में केंद्र सरकार ने एफआरपी को 10 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर 285 रुपये कर दिया था.

चीनी वर्ष अक्टूबर से शुरू होता है और अगले साल सितंबर में खत्म होता है.

आइए जानते हैं एफआरपी बढ़ाने से किसानों को कितना फायदा होगा.

गन्ने की खेती से जुड़े किसानों का कहना है कि मौजूदा समय में गन्ने पर लागत बढ़ गई है.

इसीलिए सरकार को 25-30 रुपये प्रति क्विंटल तक दाम बढ़ाने चाहिए.

 

कितना हुआ एफआरपी

सरकार के फैसलों की जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि FRP 5 रुपये प्रति क्विंटल बढ़कर 290 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है.

उन्होंने बताया कि  पिछले साल FRP में 10 रु प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी की गई थी.

 

पीयूष गोयल ने बताया कि शुगर का एफआरपी 290 प्रति क्विंटल- जो 10 फीसदी रिकवरी पर आधारित होगा.

शुगर का 70 लाख टन एक्सपोर्ट होगा. जिसमें से 55 लाख टन हो चुका है. अभी 7.5 फीसदी से 8 फीसदी एथोनॉल की ब्लेंडिंग हो रही है.

अगले कुछ साल में ब्लेंडिंग 20 फीसदी हो जाएगा.आज के फैसले के बाद भारत एक मात्र देश होगा जहां शुगर प्राइस का लगभग 90 – 91% गन्ना किसानों को मिलेगा.

विश्व के देशों में शुगर प्राइस का 70 से 75% गन्ना किसानों को मिलता.

 

सरकार की नीतियों के कारण गन्ना किसानों को उपज की अच्छी कीमत मिलेगी.

गन्ने का FRP मूल्य 290 रुपये प्रति क्विंटल होने से किसानों को लागत का 87% रिटर्न मिलेगा.

इथेनॉल उत्पादन, चीनी निर्यात को बढ़ावा, बफर स्टॉक के माध्यम से शुगर इंडस्ट्री को पैसा देना, इस प्रकार के निर्णयों से सुनिश्चित किया गया कि गन्ना किसानों को समय से भुगतान मिले.

 

बकाया गन्ना भुगतान

पीयूष गोयल ने कहा कि शुगर ईयर 2020 – 21 में गन्ना किसानों को 91,000 करोड़ का भुगतान करना था, जिसमें से 86,000 करोड़ का भुगतान हो चुका है.

यह दर्शाता है कि केंद्र सरकार की योजनाओं के कारण गन्ना किसानों को अपने भुगतान के लिये इंतजार नही करना पड़ता है.

 

केंद्र सरकार ने किसानों, और उपभोक्ता के हितों को संभाला है, ताकि किसानों को समय से गन्ने का भुगतान हो, और उपभोक्ता को महंगी चीनी ना खरीदनी पड़े.

 

क्या होता है एफआरपी 

एफआरपी वह न्यूनतम दाम होते है, जिस पर चीनी मिलों को किसानों से गन्ना खरीदना होता है.

कमीशन ऑफ एग्रीकल्चरल कॉस्ट एंड प्राइसेज (सीएसीपी) हर साल एफआरपी की सिफारिश करता है.

 

सीएसीपी गन्ना सहित प्रमुख कृषि उत्पादों की कीमतों के बारे में सरकार को अपनी सिफारिश भेजती है.

उस पर विचार करने के बाद सरकार उसे लागू करती है. सरकार गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 के तहत एफआरपी तय करती है.

 

एफआरपी (FRP) और एसएपी (SAP) में क्या अंतर होता है?

एफआरपी बढ़ाने का फायदा देश के सभी गन्ना किसानों को नहीं होता है.

इसकी वजह यह है कि गन्ना का ज्यादा उत्पादन करने वाले कई राज्य गन्ना की अपनी-अपनी कीमतें तय करते हैं.

 

इसे स्टेट एडवायजरी प्राइस (एसएपी) कहा जाता है.

उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा अपने राज्य के किसानों के लिए अपना एसएपी तय करते हैं.

आम तौर पर एसएपी केंद्र सरकार के एफआरपी से ज्यादा होता है.

 

अगर आसान शब्दों में कहें तो दाम बढ़ाने के बाद नई एफआरपी  290 रुपये प्रति क्विटंल हो जाएगी.

जबकि, उत्तर प्रदेश सरकार ने बीते साल एसएपी के तौर पर 315 रुपये प्रति क्विंटल के दाम तय किए.

 

सामान्य किस्म के गन्ना के लिए 315 रुपये प्रति क्विटंल है.

इस तरह केंद्र सरकार के एफआरपी बढ़ाने का उन राज्यों के किसानों को कोई फायदा नहीं होगा, जहां एसएपी की व्यवस्था है.

 

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