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जैविक खेती जमीन और जीवन दोनों की जरूरत

 

खेती महंगी हो गयी है।

 

कृषि उपकरण, बीज, खाद, पानी और मजदूर सब महंगे हो गये हैं। सरकार लाख दावा कर ले, रिजर्व बैंक की रिपोर्ट यह सच सामने लाती है कि आज भी पांच में से दो किसान बैंकों की बजाय महाजनों से कर्ज लेकर खेती करने को मजबूर हैं, जिसकी ब्याज दर ज्यादा होती है। दूसरी ओर किसान हों या सरकार, सबका जोर कृषि उत्पादन की दर को बढ़ाने पर है। ज्यादा उत्पादन होने पर कृषि उपज की कीमत बाजार में गिरती है। तीसरी ओर अधिक उत्पादन के लिए हाइब्रिड बीज और रासायनिक खाद व कीटनाशक के इस्तेमाल से फलों और सब्जियों में सडऩ जल्दी आ रही है। किसान उन्हें ज्यादा समय तक रख नहीं सकते। इन सब का नुकसान किसानों को उठाना होता है।

 

हर साल यह स्थिति बनती है कि बाजार में सब्जियों की कीमत में भारी गिरावट और सडऩ की दर में वृद्धि के कारण किसान उन्हें खेतों में ही नष्ट कर देते हैं। सच यह भी है कि जमीन सीमित है। अन्न की मांग जन संख्या के अनुसार बढ़ रही है। इस मांग को न्यूनतम जमीन में अधिकतम पैदावार से ही पूरा किया जा सकता है। ऐसे में सस्ती और टिकाऊ खेती ही अंतिम विकल्प है। जब लागत कम होगी, तब कृषि विशेषज्ञ देशज ज्ञान के आधार पर परंपरागत खाद के इस्तेमाल और जैविक खेती का भरपूर अनुभव रखते आये हैं।

 

भड्डरी और घाघ ने भी खाद के इस्तेमाल को लेकर अनेक कहावतें कही हैं। उनमें भी ज्यादा उत्पादन पाने की विधि निहित है, लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद रासायनिक खाद ने हमारे खेतों की उर्वराशक्ति को कई गुना बढ़ा देने के सपनों के साथ परंपरागत खाद के इस्तेमाल हो गयी। हम द्वितीय हरित क्रांति के इस दौर में सस्ती, टिकाऊ, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए अनुकूल तथा अधिक उत्पादन लक्ष्य को प्राप्त कर सकने वाली विधि से खेती कर कैसे इस स्थिति का मुकाबला कर सकते।

 

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सस्ती खेती के लिए जैविक खेती अपनाएं 

यह रसायनिक खेती के मुकाबले कम खर्चीली, टिकाऊ और स्वस्थ है। इसमें रसायनिक खाद, रसायनिक कीटनाशक और रसायनिक खरपतवारनाशी दवाओं के स्थान पर जैविक खाद और जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है। इन परंपरागत साधनों और विधियों में भी कृषि वैज्ञानिकों ने कई नये आयाम जोड़े हैं। इसलिए इनके इस्तेमाल से भी हम भरपूर खेती का लाभ ले सकते हैं। इससे भी अधिक पैदावार प्राप्त किया जा सकता है। इसमें खाद के रूप में आप गोबर खाद, मटका खाद, हरी खाद, केंचुआ खाद, नाडेप खाद आदि का इस्तेमाल करें।

 

ये खाद आपके खेतों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाती हैं और जैव विविधता को बचाती है। ये रसायनिक खाद के मुकाबले सस्ती हैं। इन्हें आप अपने ही खेतों में तैयार भी कर सकते हैं। इसलिए आप अपनी जरूरत के मुताबिक और सही समय पर खाद प्राप्त कर सकते हैं। यह पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाती है।

 

खेतों की मिट्टी और पानी को यह जहरीला नहीं बनाती, जैसा कि रसायनिक खाद करती हैं। इसलिए जब आप जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं, तो न केवल इस मौसम के लिए सुरक्षित खेती कर रहे होते हैं, बल्कि भविष्य के लिए भी अपने खेत की मिट्टी, पानी और हवा को भी जहरीला होने से बचाते हैं। 1960 में जब प्रथम हरित क्रांति का दौर चला, तब रसायनिक खाद के अंधाधुंध इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया। नतीजा हुआ कि खेतों की स्वाभाविक उर्वराशक्ति और जलधारण क्षमता नष्ट होती चली गयी।

 

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रसायनिक खाद के इस्तेमाल से जमीन के नीचे का पानी जहरीला हो गया। रसायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से फसलों में इसके अंश समा गये। हम हर दिन सब्जी, फल और अन्न के रूप में रसायनिक तत्वों को खा रहे हैं।

 

रसायनिक खरपतवार नाशकों ने भी हमारी मिट्टी, हमारे पानी और हमारी हवा को जहरीला बना दिया। साथ ही उन जीवाणुओं को भी मार दिया, जो जैविक संतुलन के लिए जरूरी हैं। जैविक खेती इस स्थिति से निकलने का कारगर विकल्प है। सरकार और कृषि वैज्ञानिक भी इस सत्य को स्वीकार कर रहे हैं और जैविक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं।

 

सिंचाई संकट का भी रास्ता 

जैविक खेती सिंचाई संकट से भी निकलने का बड़ा रास्ता देती है और खेती-किसानी को सस्ता बनाती है। जैविक खेती में रसायनिक खेती के मुकाबले सिंचाई जरूरत कम पड़ती है। दूसरी बात कि जैविक खाद से खेतों में जलधारण की क्षमता बढ़ती है। तीसरी बात कि जैविक खेती में खेत के पानी का भाप बन कर उडऩे की प्रक्रिया कम होती है। इससे खेतों में लंबे समय तक नमी बनी रहती है और सिंचाई मद में किसान के खर्च को कम करती है।

 

अच्छी फसल का लाभ

जैविक खेती से उत्पादित फसलों में सडऩे और गलने की दर रसायनिक खाद के मुकाबले मंद होती है। यानी फल हो या सब्जी, जल्दी गलते और सड़ते नहीं हैं। इससे किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए ज्यादा समय मिलता है। जैविक खेती का दीर्घकालीन सकारात्मक प्रभाव भी है। खेती की गुणवत्ता को बनाये रखने में यह कारगर है।

 

रसायनिक खाद की कहानी 

फ्रांस के कृषि वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि पौधों के विकास के लिए तीन तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटास जरूरी है। इनसे पौधों का अच्छा विकास एवं अच्छी उपज प्राप्त हो सकती है। र्जमन के वैज्ञानिक लिबिक ने इन तीनों के रसायनिक संगठक की खाद बनायी और खेतों में उसका इस्तेमाल किया। द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के बाद भारी मात्रा में गोला -बारूद की रसायनिक सामग्रियां बच गयीं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने इन सामग्रियों से खाद एवं कीटनाशक बनाया और दुनिया भर में इसके इस्तेमाल को लेकर प्रचार अभियान चलाया।

 

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जैविक खेती : लाभ ही लाभ 

जैविक खेती के कई लाभ हैं। इससे खेत और किसान दोनों आत्मनिर्भर होते हैं। यानी अगर आपने जैविक खेती शुरू की है, तो कुछ ही सालों में आपके खेत की उत्पादक क्षमता का स्वाभाविक विकास इतना हो जाता है कि बहुत अधिक पानी और खाद की जरूरत नहीं रह जाती। किसानों की रसायनिक खाद पर निर्भरता घट जाती है। चूंकि किसान खुद खाद तैयार कर सकते हैं, इसलिए उन्हें सरकार और खाद आपूर्तिकर्ताओं की ओर मुंह उठाये नहीं रहना पड़ता है। चूंकि जैविक खेती सस्ती है। इसलिए किसान को कम लागत पर अधिक कृषि उत्पादन का भरपूर अवसर मिलता है।

 

source : krishakjagat

 

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