पैदावार में होगा भारी इजाफा और किसानों की बढ़ेगी कमाई
इस वक्त किसान गेहूं की बुवाई की तैयारियों में लगे हैं. कुछ हिस्सों में इस रबी फसल की बुवाई शुरू हो चुकी है तो कुछ में होने वाली है.
ऐसे में हम किसानों को पांच उन्नत किस्मों को बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी खेती कर के किसान अधिक पैदावार हासिल कर पाएंगे.
गेहूं हमारे देश की एक प्रमुख फसल है. रबी सीजन में किसान इसकी बड़े पैमाने पर खेती करते हैं.
अगर हमारे किसान उन्नत किस्मों का चयन करें तो अधिक मात्रा में पैदावार हासिल होगा और उनकी आमदनी में बढ़ोतरी होगी.
साथ ही इन किस्मों के चुनाव से कीट और रोग नियंत्रण पर आने वाले खर्चे में भी कमी आएगी.
इस वक्त किसान गेहूं की बुवाई की तैयारियों में लगे हैं. कुछ हिस्सों में इस रबी फसल की बुवाई शुरू हो चुकी है तो कुछ में होने वाली है.
ऐसे में हम किसानों को पांच उन्नत किस्मों को बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी खेती कर के किसान अधिक पैदावार हासिल कर पाएंगे.
गेहूं की पहली उन्नत किस्म है डीबीडब्ल्यू-222.
डीबीडब्ल्यू-222 या करण नरेंद्र
डीबीडब्ल्यू-222 को करण नरेंद्र भी कहा जाता है. एक हेक्टेयर में औसत पैदावार 61.3 क्विंटल होती है.
जबकि इसमें 82.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज की क्षमता मौजूद है. समय पर बुवाई के लिए इसे बेहतरीन किस्म माना जाता है.
इसका तना मजबूत और होता है और जलभराव की परिस्थितियों से निपटने की क्षमता होती है.
143 दिन में तैयार होने वाले करण नरेंद्र पर पीला सड़न रोग का भी असर नहीं होता. अन्य रोगों के खिलाफ में यह प्रतिरोधी होता है.
सिंचित अवस्था में इसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान की जलवायु को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है.
डीबीडब्ल्यू-187 एनडब्ल्यूपीजेड या करण वंदना
गेहूं की दूसरी उन्नत किस्म है डीबीडब्ल्यू-187 एनडब्ल्यूपीजेड. इसे करण वंदना भी कहते हैं.
जिन इलाकों में करण नरेंद्र की खेती हो सकती है, वहां इसे भी बोया जा सकता है.
148 दिन में पककर तैयार होने वाली किस्म 61 से 96 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार देती है.
इसमें पीला सड़न, पत्ती सड़न और झुलसा रोग से बचने की क्षमता है.
करनाल बंट और लूड स्मट के प्रति भी कुछ प्रतिरोधक क्षमता इसमें पाई जाती है.
डीबीडब्ल्यू-187 एनईपीजेड
तीसरी उन्नत किस्म है डीबीडब्ल्यू-187 एनईपीजेड. इसे करण वंदना का ही दूसरा रूप मान सकते हैं.
यह किस्म 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है. डीबीडब्ल्यू-187 एनईपीजेड किस्म से किसान एक हेक्टेयर में 49 से 65 क्विंटल तक की पैदावार हासिल कर सकते हैं.
समय पर बुवाई करने के लिए इसे भी उन्नत किस्म माना जाता है. इसे उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बोया जा सकता है.
इसके अलावा पूर्वोत्तर के उत्तरी इलाकों में भी इसकी खेती की जा सकती है. इसमें प्रोटीन की उच्च मात्रा यानी 11.6 फीसदी पाई जाती है.
डीबीडब्ल्यू-252 या करण श्रिया
डीबीडब्ल्यू-252 यानी करण श्रिया को सिर्फ एक सिंचाई की जरूरत पड़ती है.
127 दिन में पकने वाली इस किस्म में सूखे जैसी परिस्थिति को सहन करने की क्षमता है.
इसमें झुलसा, पत्ती सड़न और करनाल बंट जैसी बीमारियों से भी सुरक्षा के गुण मौजूद हैं.
पोषण से भरपूर इस किस्म से अच्छे प्रसंस्कृत उत्पाद बनते हैं बल्कि इसे इजाद ही वाणिज्यिक उत्पादों के लिए किया गया है.
पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर भारत के मैदानी इलाकों के किसान इसे बो सकते हैं.
इसकी उपज थोड़ी कम है और एक हेक्टेयर में 36.7 क्विंटल से 55.6 क्विंटल के बीच है.
डीबीडब्ल्यू 47
डीबीडब्ल्यू 47 में यलो पिगमेंट पाया जाता है. यहीं वजह है कि यह पास्ता बनाने के लिए उत्तर वेरायटी है.
इसमें प्रोटीन की मात्रा 12.69 फीसदी है, जो किसी भी दूसरी किस्म से कहीं ज्यादा है.
इस किस्म की बुवाई कर किसान 74 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार हासिल कर सकते हैं.
इसे मध्य भारत में सिंचित अवस्था में उगाना बेहतर रहता है.
यह भी पढ़े : ये हैं प्याज की 5 सबसे उन्नत किस्में
यह भी पढ़े : गेहूं और सरसों की अच्छी पैदावार के लिए वैज्ञानिक सलाह
यह भी पढ़े : किसानो को सलाह, प्रति हैक्टेयर 100 किलोग्राम गेहूं का उपयोग बुआई में करें
शेयर करे