मार्केट में भारी डिमांड
देश का एक बड़ा रकबा आज भी असिंचित है.
कम पानी वाले जमीन पर ज्यादा फसलें नहीं उगा सकते हैं, लेकिन ये बात भी सही है कि ज्यादातर कैश क्रॉप बंजर जमीन पर उगाई जाती हैं.
भारत का कृषि क्षेत्र विकास और विस्तार की दिशा में आगे बढ़ रहा है.
हम खाद्यान्न उत्पादन में तो आगे हैं ही, फल-सब्जियों का उत्पादन बढ़ाने की कवायद भी तेज हो गई है.
बागवानी फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को प्रेरित किया जा रहा है.
कोरोना महामारी के बाद से औषधी और जड़ी-बूटियों की मांग बढ़ गई है.
आयुर्वेद का जनक होने के नाते अब हम जड़ी-बूटियां भी उगा रहे हैं और अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.
इस खेती की खास बात यह है कि खर्च ना के बराबर ही आता है.
बंजर जमीन पर भी काफी अच्छा उत्पादन मिल जाता है और बाजार में इन फसलों के अच्छे दाम मिल जाते हैं.
कई दवा बनाने वाली कंपनियां अब किसानों को अपने साथ जोड़कर औषधीय फसलों की कांट्रेक्ट फार्मिंग करवा रही हैं.
इस बीच दो औषधीय फसलें हैं, जिनकी डिमांड में काफी इजाफा हुआ है और बाजार में इन औषधीयों से बने उत्पादों को काफी पसंद किया जा रहा है. इनमें लेमनग्रास और एलोवेरा का नाम शामिल है.
अरोमा मिशन के तहत इन दोनों ही फसलों की खेती करने के लिए तकनीकी और आर्थिक मदद दी जा रही है.
लेमनग्रास की खेती
लेमनग्रास एक खुशबूदार घास है, जिसे जानवर भी नहीं खाते और बंजर जमीन पर भी बढ़िया उत्पादन देती है.
ये किसानों को कम खर्च में जबरदस्त मुनाफा दे सकती है.
इस घास से परफ्यूम, साबुन, निरमा, डिटर्जेंट, तेल, हेयर ऑइल, मच्छर लोशव, सिर दवा, कॉस्मेटिक और अरोमा थेरेपी के लिए सिरम बनाए जाते हैं.
भारत से हर साल 700 टन लेमनग्रास का प्रोडक्शन मिल रहा है और नए किसान भी अब लेमनग्रास की तरफ रुख कर रहे हैं.
इसकी खेती करने के कई तरीके हैं. आप चाहें तो लेमनग्रास की अंतरवर्तीय खेती कर सकते हैं या फिर खेत की मेड़ों पर भी इस घास की रोपाई कर सकते हैं.
कुछ ही समय में यह घास तैयार हो जाती है, जिसकी लगातार कई बार हार्वेस्टिंग ले सकते हैं.
किसान चाहें तो लेमनग्रास की खेती के साथ-साथ इसकी प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर भी अतिरिक्त आय ले सकते हैं.
एलोवेरा की खेती
राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश से सटे बुंदेलखंड के इलाकों में एलोवेरा की खेती करना फायदेमंद साबित हो सकता है, क्योंकि ये फसल कम पानी वाले इलाकों में तेजी से पनपती है.
खासतौर पर रेतीली दोमट मिट्टी एलोवेरा की खेती के लिए सबसे अनुकूल रहती है, जिन इलाकों में बारिश की कमी है, उन इलाकों के किसान अपने खाली खेतों में एलोवेरा के बेबी प्लांट्स लगाएं, जो अगले 5 साल तक भरपूर उत्पादन देते रहेंगे.
एलोवेरा एक ऐसी औषधी है, जिसे बॉडी, हेयर, स्किन पर लगाने के साथ-साथ जूस के तौर पर सेवन किया जाता है.
इस फसल को भी जानवरों से कोई खतरा नहीं होता. इसकी पत्तियों से कड़वा जेल निकलता है.
किसान चाहें तो 40,000 रुपये का निवेश करके अपने खेत में 12,000 पौधे लगा सकते हैं, जिनसे 2 से 2.5 लाख रुपये सालाना आमदनी ले सकते हैं.
अरोमा मिशन से कैसे मिलेगा लाभ
यदि आप भी सुगंधित और औषधीय फसलों की खेती करते हैं या भविष्य में इन फसलों को उगाने का मन बना रहे हैं तो अमोमा मिशन के जरिए खेती की ट्रेनिंग से लेकर प्रोसेसिंग और मार्केटिंग तक की तकनीकी जानकारी मिल सकती है.
इस में अरोमा मिशन के तहत इन कम लागत वाली औषधीय सुगंधित फसलों को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि असिंचित इलाकों में भी किसानों की आय का सृजन हो सके और पारंपरिक फसलों से अच्छा खेती का विकल्प दिया जा सके.
अमोरा मिशन में लेमन ग्रास से लेकर मेंथा, लैवैंडर जैसी तमाम फसलों को शामिल किया गया है.
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