हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें

डुमाला डैम ने दो साल में बदली दो जिलों के किसानों की तकदीर

WhatsApp Group Join Now
Instagram Group Join Now
Telegram Group Join Now

बदनावर।

 

आदिवासी बाहुल्य पश्चिमी क्षेत्र में एक डैम ने दो वर्षों में दो जिलों धार व रतलाम के 500 से अधिक लघु व सीमांत किसानों की तकदीर ही बदलकर रख दी है। कुछ किसानों ने शासन की योजनाओं का बखूबी क्रियान्वयन करते हुए उद्यानिकी खेती को अपनाकर नया आयाम दिया है।

दोहरा लाभ कमाने के लिए किसान फलदार पौधों के साथ ही औषधीय फसल लगा रहे हैं। किसान आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढाते हुए स्ट्राबेरी, अनार, अमरूद का भरपूर उत्पादन कर रहे हैं।

इससे क्षेत्र को देश की राजधानी दिल्ली समेत महाराष्ट्र, गुजरात आदि क्षेत्रों में पहचान मिली है। 600 हेक्टेयर से अधिक रकबा सिंचित होने से जमीन के भाव भी आसमान छूने लगे हैं।

 

यह भी पढ़े : किसान ने दूध बेचने के लिए खरीदा 30 करोड़ का हेलीकॉप्टर

 

ग्राम जाबड़ा के पास रत्तागिरी व सिमलावदी नदी पर वर्ष 2018 में जल संसाधन विभाग द्वारा डुमाला डैम का निर्माण 14 करोड़ 32 लाख 30 हजार रुपये की लागत से किया गया था। निर्माण के समय 10 करोड़ रुपये तो मुजावजा ही बांटा गया था।

88 वर्ग किमी क्षेत्र से डैम में पानी संग्रहित होता है, जो अधिकांशतः रतलाम क्षेत्र के नदी-नालों से आता है। डैम की जल संग्रहण क्षमता 3.15 मिलीयन घन मीटर है। इससे सिंचाई के साथ भूजल स्तर में भी वृद्धि हुई है। डैम के रिसन से नदी में पानी बहने लगा है। पेयजल संकट से भी क्षेत्रवासियों को राहत मिली है।

 

सिंचाई के लिए 5 किमी तक बिछाई पाइप लाइन

उक्त डैम से धार जिले का ग्राम जाबड़ा व उसके आसपास की 300 हेक्टेयर व रतलाम जिले के छत्री, पिपलोदी खेड़ा व बिरमावल क्षेत्र की 300 हेक्टेयर कृषि भूमि में सिंचाई हो रही है।

किसानों द्वारा लाखों रुपये खर्च कर सिंचाई के लिए डैम से अपने-अपने खेतों तक करीब 1 से 5 किमी तक लंबी पाइप लाइनें बिछाई गई हैं। हालांकि बिजली कनेक्शन को लेकर किसानों को खासी मशक्कत करनी पड़ी है।

कनेक्शन के लिए सभी किसानों ने मिलकर करीब 20 लाख रुपये जुटाए और 6 निजी ट्रांसफार्मर लगवाए हैं। जबकि कुछ किसानों ने शासन की अनुदान योजना के तहत सोलर पैनल भी लगवाए हैं।

डैम के वेस्टवेयर से निकलने वाले पानी से ग्राम लाम्पाता, सालरियापाड़ा आदि गांवों के किसान भी सिंचाई कर रहे हैं। हर साल दीपावली के पूर्व ही सूखने वाली सिमलावदी नदी में रिसन का पानी आने से इसके आसपास के खेतों में भी लोग सिंचाई कर रहे हैं।

 

उद्यानिकी का रकबा बढ़ा

डैम बनने से उसके आसपास की जमीन पूरी तरह से सिंचित होने लगी हैं। जहां किसान पहले परपंरागत रूप से सोयाबीन के अलावा गेहूं व चना दो ही फसल बमुश्किल ले पाते हैं, वहीं अब तीन-तीन फसलें ले रहे हैं।

सबसे अधिक रकबा उद्यानिकी का बढा है। किसानों ने नई-नई तकनीक अपनाकर स्ट्राबेरी, अमरूद, नीबू, अनार, एप्पल बेर, पपीता आदि के बगीचे लगाकर उद्यानिकी को बढ़ावा दिया और मौजूदा समय में भरपूर मुनाफा कमा रहे हैं।

इससे ना सिर्फ किसानों की तकदीर बदल गई है, बल्कि वे आत्मनिर्भर भी बने हैं। उनके रहन-सहन के स्तर में बदलाव आया है। इंटनरेट मीडिया का सहारा लेकर किसान देश की प्रमुख मंडियों के रुख जानकर अपना माल बिक्री करने के लिए मंडियों में ले जाते हैं।

ग्राम जाबड़ा के किसान ईश्वरलाल पाटीदार, मुन्नाालाल जाट, गोपाल पाटीदार, सुनील शर्मा, बद्रीलाल जाट आदि किसानों का कहना है कि वर्षों से ग्रामवासी पानी के लिए तरस रहे थे।

सिंचाई तो दूर की बात, पेयजल के लिए भी संकट झेलना पड़ रहा था, किंतु डैम बनने के बाद से अब गर्मी के दिनों में भी खेतों में भरपूर सिंचाई कर खेती कर रहे हैं। इससे भरी गर्मी में भी क्षेत्र में हरी सब्जियां उचित दामों पर मिलने लगी है।

 

मिलने लगा काम, पलायन भी रुका

उद्यानिकी फसलों की बढ़ोतरी से पिकअप, मिनी ट्रक जैसे व्यावसायिक वाहनों को काम मिलने लगा है। इससे पश्चिमी क्षेत्र में ही व्यावसायिक वाहनों की संख्या में खासी बढोतरी हो गई है। इस कारण रोजगार बढ़ावा मिला है।

उद्यानिकी फसलों में पूरे सीजन कुछ ना कुछ काम चलने से खेतिहर मजदूरों का पलायन भी रुका है। अब तो झाबुआ और रतलाम जिले तक के मजदूरों को यहां काम मिलने लगा है।

मजदूरी भी 250 से 300 रुपये तक हो गई है। स्थानीय मंडियों और बाजारों भी स्ट्राबेरी, अनार, एप्पल बेर जैसे फाइव स्टार फ्रूट मिलने लगे हैं।

 

यह भी पढ़े : मप्र में इन जिलों में बारिश और ओले के आसार

 

source : naidunia

 

शेयर करे