देश में धान खरीफ सीजन की मुख्य फसल है। देश में किसान धान की फसल को दो तरीकों से लगाते हैं, इसमें सूखे खेतों में सीड ड्रिल के माध्यम से इसकी सीधी बोनी करना और खेतों में कीचड़ मचा कर मजदूर या पैडी ट्रांसप्लांटर के माध्यम से नर्सरी द्वारा तैयार धान के पौधों की रोपाई करना शामिल है।
धान की रोपाई
अधिकांश किसान आज भी धान लगाने के लिए रोपाई विधि को अपनाते हैं। अच्छी बारिश के साथ ही किसानों ने धान की रोपाई का काम शुरू कर दिया है।
ऐसे में किसान धान की अच्छी पैदावार ले सके इसके लिए कृषि विभाग द्वारा किसानों के लिए एडवाइजरी जारी की गई है।
किसान धान की रोपाई के समय यह सावधानियाँ बरतें
किसान कल्याण तथा कृषि विकास जबलपुर के उपसंचालक रवि आम्रवंशी ने बताया कि जिन किसानों ने अपने खेतों में नर्सरी तैयार कर ली है वे किसान सावधानी पूर्वक धान की रोपाई करने पर इसका अधिकतम उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
रोपाई के लिए धान की 20 से 25 दिनों की पौध सर्वाधिक उपयुक्त होती है। रोपाई करने से एक दिन पहले नर्सरी में लगी हुई धान की अच्छी तरह सिंचाई करनी चाहिए।
ताकि दूसरे दिन धान के पौधों को निकालते समय उनकी जड़ न टूटें और पौधे भी आसानी से निकल जाएं।
पौधों की जड़ों में लगी मिट्टी को पानी से अच्छी तरह धोना चाहिए। इसके बाद किसानों द्वारा जड़ों का उपचार करने से फसलों में उर्वरक की आंशिक पूर्ति की जा सकती है।
कृषि विभाग के उपसंचालक ने बताया कि कार्बेंडाजिम 75 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 2 ग्राम मात्रा एवं स्ट्रेप्टोसाइक्लिन की 0.5 ग्राम मात्रा को 1 लीटर पानी में घोल बनाकर धान के पौधों को 20 मिनट तक डुबोकर रखना चाहिए।
इसके बाद उपचारित पौधे को एक बोतल नैनो डीएपी के 100 लीटर पानी में बने घोल को दोबारा 20 मिनट तक डुबोकर रखना चाहिए।
उपचारित पौधों की तैयार खेत में परस्पर 20 सेंटीमीटर की दूरी पर स्थित कतारों में 10 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपाई करना चाहिए।
रोपाई करते समय एक स्थान पर दो से तीन पौध लगाना चाहिए और पौधों की गहराई दो से तीन सेंटीमीटर से अधिक नहीं रखनी चाहिए।
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