भारत में ग्वार की खेती प्रमुख रूप से राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, एमपी व महाराष्ट्र में की जाती है.
देश के संपूर्ण ग्वार उत्पादक क्षेत्र का करीब 87.7 प्रतिशत क्षेत्र राजस्थान में है.
ग्वार की खेती
भारत दुनिया का सबसे बड़ा ग्वार उत्पादक देश है. इसका 80 फीसदी उत्पादन यहीं होता है.
ग्वार की खेती मुख्य तौर पर शुष्क व अर्धशुष्क इलाकों में होती है. यह गर्म मौसम की फसल है, जिसे बाजरे के साथ मिलाकर बोया जाता है.
इसे हरी सब्जी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. कुछ जगहों पर इसे चारे के रूप में भी प्रयोग करते हैं. इसका अच्छा दाम मिलता है.
इससे किसान सालाना लाखों रुपये की कमाई कर सकते हैं.
इसकी खेती राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, एमपी व महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में की जाती है. महाराष्ट्र में 8910 हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती की जा रही है.
महाराष्ट्र के कृषि विभाग अधिकारियों ने बताया कि पशुओं को ग्वार खिलाने से उनमें ताकत आती है.
दूधारू पशुओं की दूध देने की क्षमता में वृद्धि होती है. ग्वार से गोंद का निर्माण भी किया जाता है.
‘ग्वार गम’ का उपयोग अनेक उत्पादों में होता है. ग्वार फली से स्वादिष्ट सब्जी बनाई जाती है.
इसका इस्तेमाल दाल और सूप बनाने में भी किया जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में यह काफी लोकप्रिय फसल है.
ग्वार की खेती के जलवायु और भूमि
ग्वार एक उष्णकटिबंधीय फसल है जो 18 से 30 डिग्री सेल्सियस के औसत तापमान पर पकती है.
खरीफ की गर्म और आर्द्र जलवायु के कारण पेड़ों की वृद्धि अच्छी होती है. सर्दी के मौसम में इन फसलों की खेती लाभदायक नहीं होती.
यह फसल सभी प्रकार की मिट्टी में उगाई जाती है. अच्छी जल निकासी वाली मध्यम से भारी मिट्टी में फसल अच्छी तरह से बढ़ती है.
यदि मिट्टी की सतह 7.5 से 8 के बीच हो तो फसल अच्छी तरह से विकसित होती है.
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ग्वार की खेती करने का सही मौसम
ग्वार की खेती खरीफ और गर्मी के मौसम में की जाती है.
गर्मी के मौसम में जनवरी और फरवरी में ग्वार की रोपाई की जाती है.
बीज दर 14 से 24 किलो बीज प्रति हेक्टेयर के लिए पर्याप्त है.
250 ग्राम राइजोबियम को 10 से 15 किलो बीज में बोने से पहले डालें.
उर्वरक और पानी का प्रयोग
मिट्टी के प्रकार और जलवायु के आधार पर दो पंक्तियों के बीच 45 से 60 सेमी और पौधे की दूरी 20 से 30 सेमी होनी चाहिए.
कुछ किसान 45 सेंटीमीटर की पौध बोते हैं. यदि ग्वार को फलियों की शुष्क भूमि की फसल के रूप में उगाया जाता है, तो उसे अधिक उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है.
बागवानी फसलों को नाइट्रोजन मिट्टी की स्थिति के अनुसार दें.
इस फसल को मध्यम मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन इसे फूल आने से लेकर फूल आने तक नियमित रूप से पानी देना चाहिए.
तीन सप्ताह के बाद खरपतवार निकाल दें. दूसरी निराई खरपतवारों की मात्रा को देखते हुए करनी चाहिए.
ग्वार की उन्नत किस्में
पूसा सदाबहार – यह सीधी और लंबी बढ़ने वाली किस्म है. इसे गर्मियों और खरीफ मौसम के लिए अनुशंसित किया जाता है.
पूसा नवबहार – यह किस्म गर्मी और खरीफ दोनों मौसमों में अच्छी उपज देती है. फली 15 सेमी लंबी और हरे रंग की होती है.
पूसा मौसमी – यह अधिक उपज देने वाली किस्म खरीफ के मौसम के लिए अच्छी है. इस किस्म की फली 10 से 12 सेमी लंबी होती है और 75 से 80 दिनों में कटाई शुरू हो जाती है.
ग्वार फसल को कीट और रोग से बचाने के उपाय
भूरी – यह एक कवक रोग है जिसमें पत्ती के दोनों ओर धब्बे पड़ जाते हैं. फिर पूरी पत्ती सफेद हो जाती है. यह रोग तनों और फलियों में भी फैलता है.
उपाय – 50 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 25 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर 8 से 10 दिनों के अंतराल पर 3 से 4 बार छिड़काव करें.
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