सिवनी।
सुधरेगी मिट्टी की सेहत, होगी जैविक खेती
यूरिया खाद के लिए अब किसानों को समितियों व दुकानों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। यूरिया खाद का बेहतर विकल्प इफ्को ने ‘नैनो नाइट्रोजन’ के रूप में तैयार किया है। इसे जल्द बाजार में उतारने की तैयारी की जा रही हैं।
आने वाले खरीफ सीजन से देशभर के किसान इसका उपयोग शुरू कर सकेंगे। यूरिया खाद के मुकाबले तरल (लिक्विड) नैनो नाइट्रोजन पर किसानों को आधी राशि खर्च करनी पड़ेगी।
‘नैनो नाइट्रोजन’ सहित जिंक व कापर का प्रयोगिक उपयोग फसलों व सब्जियों पर किया जा रहा हैं। सिवनी कृषि विज्ञान केंद्र सहित देश भर में प्रदर्शन के जरिए इसका आंकलन किया जा रहा है।
बीते खरीफ व रबी सीजन में फसलों पर किए गए ‘नैनो नाइट्रोजन’ के प्रयोग से बेहतर उपज हासिल हुई हैं। साथ ही मिट्टी की उरर्वरा शक्ति बनाए रखने में यह कारगर हैं।
सबसे बड़ा फायदा यह है कि जैविक होने के कारण इसके उपयोग से तैयार फसलें पूरी तरह जैविक होगी। जैविक खेती के लिए किसानों को दूसरे तरीके अपनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
बचेगी अरबों रुपये की सब्सिडी
फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया की हाल में जारी रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019-20 में रबी व खरीफ सीजन के दौरान देशभर में करीब 1.88 करोड़ टन यूरिया का उपयोग खेती में किया गया।
मध्यप्रदेश में 16 लाख टन से ज्यादा यूरिया किसान फसलों पर हर साल डालते हैं। एक बोरी यूरिया पर सरकार को सब्सिडी के तौर पर करीब 800 रुपये चुकाने पड़ते है, तब 1100 रुपये कीमत का यूरिया किसानों को 267 रुपये प्रति बोरी की दर पर मिलता है।
एक टन यूरिया पर करीब 16 हजार रुपये की सब्सिडी सरकार वहन करती है। नैनो नाइट्रोजन का उपयोग शुरू होने से यूरिया सब्सिडी पर खर्च होने वाला केंद्र सरकार का अरबों रुपये बचेगा।
यूरिया से कम होगा दाम
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व कृषि मंत्रालय की देखरेख में इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफ्को) ने यूरिया खाद के विकल्प के तौर पर ‘नैनो नाइट्रोजन’ को विकसित किया है।
लिक्विड नाइट्रोजन के छिड़काव से फसलों को होने वाले फायदों को परखने चल रहा ट्रायल अंतिम दौर में हैं। आने वाले खरीफ सीजन से नैनो नाइट्रोजन बाजार में किसानों के लिए उपलब्ध होने की संभावना जताई जा रही है।
इफ्को को इसके व्यवसायिक उत्पादन की अनुमति भी मिल चुकी है। एक बोरी यूरिया खाद से कम दाम पर आधा लीटर नैनो नाइट्रोजन की वाटल बाजार में इफ्को के जरिए मिलेगी।
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ऐसे होगा उपयोग
कृषि विज्ञानियों के मुताबिक एक एकड़ रकबे में लगी फसल में सिंचाई के लिए आधा लीटर नैनो नाइट्रोजन पर्याप्त है। 125 लीटर पानी में घोल बनाकर इसका फसल सीधा छिड़काव किया जाता है।
एक बोरी यूरिया का काम आधा लीटर की वाटल से हो जाता है। इससे परिवहन पर होने वाला खर्च भी बचेगा। नैनो नाइट्रोजन के घोल का छिड़काव सब्जियों पर भी किया जा सकता है। इसके छिड़काव से पौधों की उर्वरा शक्ति बढ़ती है।
इसके अलावा नैनो जिंक को सल्फेट जिंक की कमी पूरा करता है जबकि नैनो कापर सूक्ष्म पोषक तत्व की कमी दूर करता है। सिवनी कृषि विज्ञान केंद्र में पिछले सीजन में गेहूं नैनो नाइट्रोजन का ट्रायल किया गया था।
यूरिया खाद से 49.55 क्विंटल गेहूं व नैनो नाइट्रोजन के उपयोग से 51.70 क्विंटल गेहूं की उपज प्राप्त हुई है। इस साल पुनः इसका ट्रायल केंद्र के फार्म में किया जा रहा है, जिसके नतीजे आगामी दिनों में हासिल होंगे।
क्यों पड़ी जरूरत
शोध से पता चला है कि नैनो उर्वरक पौधों के पोषक तत्वों की उपयोग क्षमता में वृद्धि करता है। मिट्टी की विषाक्तता को कम करता है। रासायनिक उर्वरक के उपयोग से होने वाले प्रतिकूल प्रभावों को कम करता है।
बागवानी फसलों का सटीक पोषक प्रबंधन बड़ी चुनौती है। इसके लिए रासायनिक उर्वरक पर निर्भर रहना पड़ता है। पारंपरिक उर्वरक महंगे होने के साथ मनुष्य व पर्यावरण के लिए हानिकारक है।
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यें हैं फायदें
– परंपरागत रासायनिक उर्वरकों की तुलना में 50 फीसद तक कम खपत।
– 15-30 फीसद अधिक पैदावार।
– मिट्टी की सेहत में सुधार।
– ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी।
– पर्यावरण हितैषी।
इनका कहना है
कृषि विज्ञान केंद्र के फार्म सहित किसानों के खेतों में नैनो नाइट्रोजन का ट्रायल चल रहा है। पिछले ट्रायल के बेहतर परिणाम सामने आए हैं। यूरिया खाद के विकल्प के तौर पर नैनो नाइट्रोजन को तैयार किया गया है।
जैविक होने के साथ यह मिट्टी की उर्वरा क्षमता बनाए रखता है। आने वाले खरीफ सीजन से इसके बाजार में आने की संभावना जताई जा रही है।
source : naidunia
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