मुरैना जिले के अधिकांश किसान परंपरागत खेती करते हैं। यहां आमतौर पर गेहूं, सरसों और बाजरा की फसलें उगाई जाती हैं।
हालांकि, यहां के किसान परंपरागत खेती से खुश नहीं हैं। वजह- लागत के मुकाबले मुनाफे का औसत अनुपात साल-दर-साल कम होना है।
ऐसे में इनको स्थानीय किसान अरविंद सिंह गुर्जर ने प्रायोगिक खेती की नई राह दिखाई है।
चंबल के किसान ने ड्राइविंग छोड़ लगाया बगीचा
मुरैना में धौलपुर रोड पर सरायछोला थाने के बगल से होते हुए एक गांव है मैथाना। यही रहते हैं अरविंद सिंह गुर्जर।
इनका परिवार पीढ़ियों से गेहूं, सरसों और बाजरा की खेती करता आ रहा था। अरविंद खुद ड्राइवर का काम करते थे।
खेती में लगातार हो रहे नुकसान की वजह से अरविंद ने कुछ नया करने का सोचा।
उन्होंने अपनी जमीन पर जैविक तरीके से फलदार पौधे लगाए। जानकारी जुटाई और नई तकनीकों का इस्तेमाल किया।
इसी की बदौलत वे पिछले तीन साल से मौसमी, अमरूद, सेब, पपीता, नींबू और बेर की खेती से हर साल 15 लाख रुपए तक कमा रहे हैं।
अरविंद सिंह गुर्जर की जुबानी उनकी सफलता की कहानी…
मैंने गंगापुर गांव के शासकीय हाईस्कूल से 10वीं तक पढ़ाई की। उसके बाद ट्रक चलाना सीखा। दूसरों के ट्रक चलाए। बाद में तेल का टैंकर खरीदा और उसे चलाने लगा। 2016-17 की बात है। मैं यूपी के खैरागढ़ में अपने दोस्त के घर गया था। वह मुझे लेकर अपने एक रिश्तेदार के घर आगरा गया। वहां मैंने देखा कि मेरे दोस्त के रिश्तेदार जैविक खेती करते हैं। फसलों में डालने के लिए केंचुआ खाद भी खुद ही बनाते हैं। उसी खाद से अपने घर के बगीचे में कई तरह के फल और फूलों के पौधे उगाते थे। उन्होंने बहुत सुंदर बगिया बना रखी थी। इसे देखकर मैंने निश्चय किया कि मैं भी इसी प्रकार की खेती करूंगा।
इसी सोच के साथ मैंने अपनी पुश्तैनी जमीन पर खुद खेती करने की योजना बनाई। ड्राइवर का काम छोड़कर खेती पर निर्भर होना काफी चुनौतीपूर्ण रहा। जोखिम यह था कि अगर मैं सफल नहीं हुआ तो जमा-पूंजी भी गवां बैठूंगा। इन सभी चुनौतियों के बावजूद मैंने जैविक खेती करने का निर्णय लिया। अपने दोस्त के रिश्तेदार से बात कर खेती करने के उनके तरीकों को समझा।
मैंने 2019 में प्राकृतिक खेती करना शुरू कर दिया। मेरे पास जो मवेशी थे, उनके गोबर से जैविक खाद तैयार करने लगा। केंचुआ खाद भी अपने ही खेत में तैयार की। मौसमी, अमरूद, सेब, पपीता, नींबू और बेर के पौधे लगाए। मेरे पास 15 बीघा जमीन है, लेकिन शुरुआत आधा बीघा से की। आज चार बीघा खेत में फलों का बगीचा बना रखा है। इस बगीचे के फलों से सालाना 15 लाख रुपए तक की आमदनी होती है।
मैंने आधा बीघा खेत में कुंभकार नींबू के पौधे लगाकर शुरुआत की थी। पहली फसल में 35 हजार रुपए के नींबू बिक गए। मात्र आधा बीघा खेत में इतनी अच्छी आय होने से मैं काफी उत्साहित हुआ। अगले साल 2020 में बेर के 500 पौधे लगाए। इससे मुझे एक लाख 70 हजार रुपए की उपज मिली। इसके बाद 2020 में अमरूद, काली पत्ती का अमरूद, आम, इलाहाबादी सुरखा अमरूद, जामुन, अंजीर, अरहर, पपीता, हल्दी, चीकू, थाई चीकू, सहजना, सेब, नारियल, सुपाड़ी, चेरी और इलायची के पौधे लगाए। इनसे अच्छी आमदनी हुई।
इस तकनीक से तैयार की जाती है जैविक खाद
किसान अरविंद सिंह गुर्जर ने बताया कि इन फसलों के अलावा इस साल उन्हें मौसमी से भी अतिरिक्त आय होगी।
उनके बगीचे में मौसमी के पेड़ फलों से लदे हैं। उन्होंने घर के चारों तरफ हरी घास और गुलाब सहित कई फूलों के पौधे भी लगाए हैं।
उन्होंने बताया कि बागवानी के साथ ही वे मवेशी भी पालते हैं।
इनके मलमूत्र, गोबर या फिर बचे हुए चारे और घास के साथ पेड़-पौधों के अवशेषों को सड़ाकर जैविक खाद तैयार करते हैं।
यह खाद फसल की उपज और पैदावार के लिए अच्छी होती है। इससे पौधों का विकास काफी तेजी से होता है।
साथ ही इसके उपयोग से भूमि की पैदावार क्षमता बढ़ती जाती है।
किसानों को सलाह- प्राकृतिक खेती में ज्यादा फायदा
अरविंद ने कहा, ‘मुरैना जिले का किसान सरसों, गेहूं और बाजरे के अतिरिक्त कुछ नहीं उगाना चाहता।
अगर वह प्राकृतिक खेती करे तो उसे इन परंपरागत फसलों से कहीं अधिक फायदा होगा।’
उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती की शुरुआत में ही ज्यादा मेहनत लगती है। उसके बाद कम मेहनत में अच्छी फसल पाई जा सकती है।
प्राकृतिक खेती में केमिकल का इस्तेमाल नहीं
नेचुरल फार्मिंग में किसी भी तरह के रसायन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इस खेती के लिए जैविक खाद और जैविक कीटनाशकों समेत अन्य प्राकृतिक चीजों का ही इस्तेमाल किया जाता है।
जिससे जमीन के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखा जा सकता है। पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होता। प्राकृतिक खेती में लागत भी कम आती है।