सोयाबीन पीला मोजेक प्रतिरोधी
सोयाबीन की खेती में नुकसान के कई कारण हैं, इनमें असामान्य मानसून,कीट और रोग के प्रकोप में वृद्धि, एक ही फसल चक्र को अपनाने के अलावा सोयाबीन की किस्म नहीं बदलना भी शामिल है।
इससे उत्पादकता में कमी आती है।
लेकिन देवास जिले के टोंक ब्लॉक के ग्राम रतनखेड़ी के किसान श्री संतोष चौधरी और उनके साथी श्री कमल पटेल और श्री गौरीशंकर वर्मा ऐसे किसान हैं, जो हर बार सोयाबीन की नई किस्म लगाते हैं।
इसके लिए सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान के अलावा अन्यत्र से भी अच्छी किस्म का बीज लाकर बुवाई करते हैं।
पीला मोजेक प्रतिरोधी किस्म
श्री चौधरी ने बताया कि इस साल 5 बीघे में पहली बार सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान, इंदौर द्वारा अनुशंसित एनआरसी -138 किस्म लगाई है। यह बहुत बढिय़ा किस्म है।
इसमें पीला मोजेक और तना छेदक का प्रकोप नहीं होता है।
फिलहाल फसल बहुत बढिय़ा स्थिति में है और फलियां भी पूरी तरह भरी हुई हैं।
इस किस्म का एक बीघे में 5-6 क्विंटल और 25-30 क्विंटल /हेक्टेयर उत्पादन का अनुमान है।
सोयाबीन की नई किस्मों को लगाना जरूरी
श्री चौधरी ने कहा कि पहले 9560 सोयाबीन की लोकप्रिय किस्म हुआ करती थी, लेकिन अब इसमें रोग और कीटों का प्रकोप बढऩे से लागत ज्यादा बढ़ गई है, इसलिए सोयाबीन की नई किस्मों को लगाना जरूरी है।
रिसर्च वैराइटी टीएस-213, टीएस -214, ब्लैक गोल्ड भी तीन साल से लगा रहे हैं। यह जड़ सडऩ रोग के प्रति सहनशील है।
इसमें अन्य रोग भी कम लगते हैं और उत्पादन भी अच्छा देती है। इसके अलावा एनआरसी-130 भी लगाई है।
हमें सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर के श्री बीयू दुपारे, श्री विनीत कुमार, श्री वीएस बुंदेला आदि हमारे खेतों का भ्रमण कर हमें मार्गदर्शन देते रहते हैं।
सभी किस्मों की फसल स्वस्थ हैं। उम्मीद है कि यह अच्छा उत्पादन देगी।
श्री चौधरी के खेत में हरदा/ खातेगांव और अन्य स्थानों से किसान इनके द्वारा लगाई गई सोयाबीन की नई किस्मों को देखने आते है और अपने अनुभव साझा करते हैं।
अधिकांश किसानों ने एनआरसी -138 किस्म की फसल को पसंद किया है।
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