कम खर्च में होगी ज्यादा पैदावार
प्याज भारत में खाई जाने वाली सब्जियों में से एक हैं। प्याज को किसी भी सब्जी में मिला दिया जाता हैं तो उसका स्वाद बढ़ जाता है।
प्याज की खेती आमतौर पर मैदानी व मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में रबी सीजन के समय की जाती हैं और कई क्षेत्रों में खरीफ सीजन में भी इसकी खेती की जाती है।
यह एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक फसल हैं। भारत के प्याज की मांग विदेशों में भी अच्छी हैं। इसलिए हमारा देश प्याज का प्रमुख निर्यातक देश हैं।
इसका वैज्ञानिक नाम एलियस सेपा हैं। अंग्रेजी में इसे ओनियन कहा जाता है। प्याज की खेती 5 हजार वर्षों और इससे अधिक समय पहले से होती आयी है।
प्याज में गंधक युक्त यौगिक पाये जाते हैं। इसी वजह से प्याज में गंध और तीखापन होता हैं।
प्याज का उपयोग औषधियों के रूप में भी किया जाता हैं। प्याज का उपयोग पीलिया, कब्ज, बवासीर और यकृत सम्बंधी रोगों में बहुत लाभकारी हैं।
भारत का प्याज गुणवत्ता में अच्छा होता हैं लेकिन क्षेत्रफल की दृष्टि से इसकी पैदावार अच्छी नहीं होती हैं।
इन समस्याओं का निस्तारण करने व अधिक पैदावार के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने परम्परागत खेती में कुछ बदलाव के लिए वैज्ञानिक सुझाव दिये हैं।
जिन सुझावों एवं नियमों का पालन करके प्याज की खेती से अच्छा पैसा कमाया जा सकता हैं।
किसानों को प्याज की खेती के लिए वैज्ञानिक सलाह
किसी भी सब्जी की खेती व अधिक पैदावर के लिए वैज्ञानिक तरीके व सुझाव का अधिक महत्व हैं।
हमारी मिट्टी के लिए कौनसी अनुशंसित किस्म हैं इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए, कृषि वैज्ञानिकों ने किसानें को प्याज की खेती के लिए कुछ महत्वपूर्ण टिप्स दिए हैं।
जैसे प्याज की रोपाई करने का सही वक्त, रोपाई वाले पौधे छह सप्ताह से अधिक के नहीं होने चाहिए, पौधों को छोटी क्यारियों में रोपाई करें, रोपाई से 10-15 दिन पहले प्रति एकड़ खेत में 20-25 टन सड़ी गोबर की खाद डालें।
इसी तरह 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60-70 किलोग्राम फॉस्फोरस तथा 80-100 किलोग्राम पोटाश आखिरी जुताई में डालें।
पौधों की रोपाई अधिक गहराई में न करें तथा कतार से कतार की दूरी 15 सेंमी एवं पौधे की दूरी 10 सेंमी रखें।
इससे किसानों को अधिक पैदावार और लाभ होगा। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने मौसम को देखते हुए फसलों के रखाव व बचाव के लिए सलाह जारी की है।
प्याज के लिए जलवायु
आमतौर पर प्याज को हर जलवायु में उगाया जा सकता हैं।
अगर थोड़ी सावधानी बरते व वैज्ञानिक सलाह माने तो प्याज का बढि़या उत्पादन संभव हैं।
प्याज की खेती के लिए जलवायु की बात करें तो ना अधिक गर्मी और ना अधिक ठंडी उत्तम होती हैं। इस लिए प्याज को ठंड के मौसम को जाते समय बोया जाता है।
प्याज की अच्छी उपज के लिए 20 डिग्री. से. से 27 डिग्री. से. के तापमान पर बुवाई करें। प्याज के फलों को पकने के समय 30 डिग्री. से. से 35 डिग्री. से. का तापमान बढि़या माना जाता हैं।
प्याज के लिए भूमि की तैयारी
प्याज की खेती के लिए भूमि तैयार करने से पहले खेत की मिट्टी एवं अपने क्षेत्र का जल कृषि विभाग के वैज्ञानिकों से जॉच अवश्य करवा लें।
फिर रोपाई से पहले खेत को जुताई करा के मिट्टी को भुरभुरा बना लें।
प्याज की खेती के लिए 5.8 से 6.5 के बिच पी.एच. मान के जीवांश युक्त हल्की दोमट मिट्टी भूमि को अच्छा माना गया है।
प्याज के लिए खाद की व्यवस्था
प्याज की खेती लिए खाद एवं किटनाशक प्रति हेक्टेयर के हिसाब से आवश्यकता होती है।
सबसे पहले गोबर की खाद को भूमि तैयार करते समय 300-350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मिला लेनी चाहिए।
उसके बाद नाइट्रोजन 80 किग्रा, फास्फोरस 50 किग्रा. और पोटास 80 किग्रा की जरूरत प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालनी पड़ती हैं।
पोटास और फास्फोरस की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा खेत की अंतिम तैयारी या प्याज रोपने से पहले खेत में मिला देनी चाहिए।
बाकि बची हुई नाइट्रोजन को दो बार छिड़काव करनी चाहिए पहला छिड़काव प्याज रोपने के 30 दिन के बाद और दूसरा छिड़काव 45 दिन के बाद।
प्याज के लिए सिंचाई की व्यवस्था
प्याज की खेती के लिए सिंचाई का विशेष ध्यान रखना पड़ता हैं। रबी के प्याज के समय पर 10 से 12 सिंचाई की आवश्यकता रहती हैं।
गर्मी के मौसम में 7 दिनों के अंतराल में और ठंडी के दिनों में 15 दिनों के अंतर या दो सप्ताह के अंतराल में सिंचाई करना आवश्यक हैं।
प्याज के लिए खरपतवार नियंत्रण
प्याज के लिए खरपतवार, जंगली घास फूस आदि से हानिकर होते हैं जो प्याज की अच्छी उपज के लिए सही नहीं हैं।
अतः इनको समय पर नियंत्रण करना आवश्यक होता हैं।
इनको नियंत्रण करने के लिए 2 किग्रा. वासालीपन प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में छिड़कर मिला दें, चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए 2.5 किग्रा टेरोनेरान प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में मिलाकर रोपाई के 20 से 25 दिनों बाद छिड़काव करना चाहिए।
प्याज के लिए किट और रोग का नियंत्रण
प्याज की फसल में बैगनी धब्बा रोग पाया जाता हैं इस रोग में प्याज के पत्तियों में आरम्भ से ही सफेद धसे हुए धब्बे दिखाई देते हैं।
जिनके बिच का भाग बैगनी रंग का होता है। यह रोग प्याज को काफी हानि पहुचता हैं इस रोग के कारण अधिक मात्रा में प्याज गल जाती है।
इस रोग से बचाव के लिए फफंदनाशक दवा जैसे कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का इस्तेमाल करके इस रोग से बचाव किया जा सकता हैं।
प्याज की विभिन्न उन्नत प्रजाति
रबी मौसम – एग्रीफाउण्ड लाईट रेड, एग्रीफाउण्ड डार्क रेड, अर्का कल्याण, अर्का निकेतन, पूसा साध्वी, बसन्त, पूना रेड, भीम रेड, भीमा सुपर, नासिक रेड, एन-53, पूसा रेड, पटना रेड आदि प्रमुख हैं।
खरीफ मौसम – अर्को लालिमा, बसन्त, एग्रीफाउण्ड डार्क, अर्का पीताम्बर, अर्काे कीर्तिमान आदि प्रमुख है।
1. सफेद रंग के प्याज – भीमा शुभ्रा, भमीा श्रेव्ता, प्याज चयन-131, उदयपुर 102, नासिक सफेद, सफेद ग्लोब, पूसा व्हाईट राउंड, पूसा व्हाईट फ्लैट, पूसा राउंड फ़्लैट इत्यादि प्रमुख है।
2. लाल रंग के प्याज – भीमा लाल, भीमा गहरा लाल, भीमा सुपर, हिसार-2, पंजाब लाल गोल, पंजाब चयन, नासिक लाल, लाल ग्लोब, बेलारी लाल, पूना लाल, पूसा लाल, पूसा रतनार अर्का निकेतन कल्याणपुर लाल और एल-2-4-1 इत्यादि प्रमुख है।
3 पीले रंग वाली प्याज – अर्का पीताम्बर, अर्ली ग्रेनो और येलो ग्लोब, आई आई एच आर पिली, प्रमुख किस्में हैं।
प्याज की खेती को लाल सोना भी कहा जाता है। प्याज के भावों में तेजी ने किसानों को कई बार जबरदस्त फायदा पहुंचाया है।
किसान भाई अगर वैज्ञानिक द्वारा बताए गए सुझावों को अपनाकर खेती करते हैं तो उन्हें फसल में नुकसान की संभावना बहुत कम होगी तो वो ज्यादा मुनाफा कमाएंगे।
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