भारत में अधिकांश हिस्सों में पपीते की खेती होती है.
इस फल को कच्चा और पकाकर, दोनों तरीके से उपयोग में लाया जाता है.
इस फल में विटामिन ए की मात्रा अच्छी पाई जाती है, वहीं पर्याप्त मात्रा में इसमें पानी भी होता है, जो त्वचा को नम बनाए रखने में सहायक है.
अगर इसकी उन्नत तरीके से खेती की जाए, तो कम लागत पर अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है.
इतना ही नहीं, इसकी खेती के साथ इसकी अंत:वर्तीय फसलों को भी बोया जा सकता है, जिनमें दलहनी फसल जैसे मटर, मैथी, चना, फ्रेंचबीन व सोयाबीन आदि हैं.
अब इसकी खेती पूरे भारत में की जाने लगी है, तो आइए आपको पपीते की खेती से संबंधित जानकारी देते हैं.
पपीते की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
इसकी खेती गर्म नमी युक्त जलवायु में की जा सकती है. इसे अधिकतम 38 से 44 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर उगाया जा सकता है.
इसके साथ ही न्यूनतम 5 डिग्री सेल्सियस से तापमान कम नहीं होना चाहिए. पपीते को लू और पाले से भी बहुत नुकसान होता है.
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पपीते की खेती का उचित समय
इसकी खेती साल के बारहों महीने की जा सकती है, लेकिन फरवरी, मार्च व अक्टूबर के मध्य का समय उपुक्त माना जाता है.
इन महीनों में उगाए गए पपीते की बढ़वार काफी अच्छी होती है.
पपीते की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
पपीता बहुत ही जल्दी बढऩे वाला पेड़ है, इसलिए इसे साधारण ज़मीन, थोड़ी गर्मी और अच्छी धूप मिलना अच्छा होता है.
इसकी खेती के लिए 6.5-7.5 पी.एच मान वाली हल्की दोमट या दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है, जिसमें जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो.
पपीते की उन्नत किस्में
- पूसा डोलसियरा
- पूसा मेजेस्टी
- रेड लेडी 786 (संकर किस्म)
खेत की तैयारी
पौधे लगाने से पहले खेत की अच्छी तरह तैयारी कर लेना चाहिए. सबसे पहले खेत को समतल कर लें, ताकि पानी न भर सकें.
बीज की मात्रा
इसके लिए बीज की मात्रा एक हेक्टेयर के लिए 500 ग्राम पर्याप्त होती है. ध्यान रहे कि बीज पूरी तरह पका हुआ होना चाहिए.
बुवाई से पहले 3 ग्राम केप्टान से एक किलो बीज को उपचारित करना चाहिए.
बुवाई का तरीका
इसके बाद पपीता के लिए 50x50x50 सेमी आकार के गड्ढे 1.5×1.5 मीटर के फासले पर खोद लें.
बता दें कि ऊंची बढऩे वाली किस्मों के लिए 1.8X1.8 मीटर का फासला रखना चाहिए, तो वहीं पौधे 20 से 25 सेमी के फासले पर लगाना चाहिए.
खाद व उर्वरक
पपीते की अच्छी फ़सल लेने के लिए 200 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फ़ॉस्फऱस एवं 500 ग्राम पोटाश प्रति पौधे की आवश्यकता होती है.
पपीते की फसल में सिंचाई
पपीता के अच्छे उत्पादन के लिए मिट्टी में सही नमी स्तर बनाए रखना जरूरी होता है, इसलिए शरद ऋतु में 10 से 15 दिन के अंतर पर सिंचाई करना चाहिए.
ग्रीष्म ऋतु में 5 से 7 दिनों के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करना चाहिए. सिंचाई के लिए आधुनिक विधि ड्रिप तकनीक अपना सकते हैं.
पपीते के रोग
पाउडरी मिल्ड्यू
इस रोग की वजह से पत्तियों की ऊपरी और निचली सतह पर छोटे गोलाकार धब्बे पड़ जाते हैं.
धब्बे आकार में धीरे-धीरे बढ़ जाते हैं और फिर आपस में मिल जाते हैं, जो सम्पूर्ण पत्ती को ढक लेते हैं.
इस रोग से अधिक प्रभावित पत्तियां मुरझा कर सूख कर लटक जाती हैं.
पाउडरी मिल्ड्यू रोग की रोकथाम
हेक्सास्टॉप रोगों को नियंत्रित करने और उनका उपचार करने में काफी सहायक है.
इसके अलावा पौधों में फुफंदी की बीमारियों को नियंत्रित करने में भी काफी प्रभावी है. यह मानव, पक्षी व स्तनधारी तीनों जीवों के लिए सुरक्षित है.
मुख्य विशेषताएं
- यह कई रोगों को नियंत्रित करता है.
- यह फफूंदनाशक जाइलेम द्वारा पौधे में संचारित होता है.
- इसका उपयोग बीज उपचार, पौधे में स्प्रे और जड़ो की ड्रेंचिंग में किया जाता है.
- यह सल्फर परमाणु के कारण फाइटोटॉनिक प्रभाव (हरेभरे पौंधे) दिखाता है.
- यह क्षारीय सामाग्रियों के साथ प्रतिकूल रहता है.
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उपलब्धता
हेक्सास्टॉप की बाज़ार में उपलब्धता 6 वर्गों के मात्रा में जैसे- 50g, 100 g, 250 g, 500g, 1 kg और 5 kg के पैकेट में है.
मात्रा
पाउडरी मिल्ड्यू रोग की रोकथाम के लिए हेक्सास्टॉप की 300 ग्राम/एकड़ मात्रा उपयुक्त रहती है.
एस्कोकाइटा पत्ती धब्बा
धब्बे पीले रंग के भूरे रंग का किनारा लिए होते हैं. इस रोग की गम्भीरता मार्च के मध्य में बढ़ जाती है.
एस्कोकाइटा पत्ती धब्बे की रोकथाम
रोग प्रतिरोधी किस्म का चुनाव करें. इस रोग की रोकथाम के लिए फफूंदीनाशक के प्रयोग से नियन्त्रित किया जा सकता है.
पपीते की तुड़ाई
जब पपीता पूर्ण रूप से परिपक्व हो जाए और फल के शीर्ष भाग में पीलापन शुरू हो जाए, तब डंठल सहित तुड़ाई करना चाहिए.
इसकी तुड़ाई के बाद स्वस्थ, एक से आकार के फलों को अलग कर लेना चाहिए. इसके अलावा सड़े-गले फलों को अलग हटा देना चाहिए.
पपीते की प्राप्त उपज
पपीते की उन्नत किस्मों से प्रति पौधे 35 से 50 किलोग्राम उपज मिल जाती है.
पपीते का एक स्वस्थ पेड़ एक सीजन में करीब 40 किलो तक फल देता है.
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