किसानों में भारी नाराजगी
इंपोर्ट के कयासों से किसान परेशान, कहा-जब महंगे बीज लेकर वो सोयाबीन की बुवाई कर रहे थे तब क्यों नहीं कम किया दाम.
अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ ने कहा-कंज्यूमर और किसान दोनों का हित देखे सरकार.
पिछले एक सप्ताह से 15 लाख मीट्रिक टन जीएम सोया के आयात का मुद्दा गरमाया हुआ है.
खासतौर पर इसे लेकर मध्य प्रदेश के किसान गुस्से में हैं, क्योंकि यह सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक है. हालांकि, सोयाबीन इंपोर्ट का नोटिफिकेशन कोई नहीं दिखा रहा है.
इस अफवाह पर सरकार ने भी कुछ स्पष्ट नहीं किया है. इसके बावजूद प्रति क्विंटल 2000 रुपये दाम कम हो गया है.
किसान संगठनों का कहना है कि जब किसान की फसल तैयार हो जाती है तब क्यों ऐसी अफवाह फैलती है या सरकार ऐसा निर्णय लेती है.
राष्ट्रीय किसान मजबूर महासंघ में मध्य प्रदेश इकाई के उपाध्यक्ष राहुल राज का कहना है कि 2 अगस्त को सोयाबीन 9544 रुपये क्विंटल था.
यह 10 तारीख की शाम तक घटकर 7618 रुपये हो गया. जबकि इस साल किसानों ने पांच हजार की बजाय 10 हजार रुपये क्विंटल के रेट पर इसका बीज खरीदा था.
महंगा बीज, महंगा डीजल (Diesel), खाद, कीटनाशक और महंगे लेबर से काम करवाया है.
अब किसानों (Farmers) को अच्छा दाम मिलने लगा था तो कुछ लोगों के पेट में दर्द हो रहा है.
बुवाई के वक्त क्यों महंगा था सोयाबीन का बीज ?
मध्य प्रदेश में इस साल 58 लाख 54 हजार हेक्टेयर में सोयाबीन की फसल बोई गई है.
ज्यादा बारिश से पहले ही कई किसानों की फसल तबाह हो गई है. सितंबर में फसल पक कर तैयार हो जाएगी.
ऐसे समय में कुछ लोग मिलकर भाव गिरा रहे हैं. अगर सरकार को इंपोर्ट ही करना था तो जब जून-जुलाई में बुवाई हो रही थी तब ऐसा करते.
ताकि किसानों को सोयाबीन का सस्ता बीज (soybean price) मिलता. राहुल राज ने सरकार से सोयाबीन इंपोर्ट न करने की मांग की है.
जब दाम एमएसपी से कम हो जाता है तब क्यों नहीं होती भरपाई ?
राहुल राज का कहना है कि जिस दिन सरकार सोयाबीन इंपोर्ट का नोटिफिकेशन निकालेगी उस दिन दाम और गिरेगा.
इसलिए उसे स्पष्ट करना चाहिए कि आयात करने वाली बात सही है या गलत. किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (Msp) की गारंटी चाहता है.
जब किसी फसल का दाम एमएसपी से नीचे चला जाता है तब सरकार किसानों की भरपाई नहीं करती लेकिन अब ऊपर चला गया तो उसे नीचे लाने के इंतजाम में जुट गई है.
सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3950 रुपये प्रति क्विंटल है.
पोल्ट्री एसोसिएशन ने की थी आयात की मांग
कुछ दिन पहले पोल्ट्री ब्रिडर्स एसोसिएशन ने सोयामील सस्ते दाम पर मुहैया करवाने के लिए सरकार से इंपोर्ट करने की मांग की थी.
सोयामील, सोयाबीन के बीजों से तैयार किए गए उत्पादों को कहते हैं जिनका इस्तेमाल पोल्ट्री इंडस्ट्री में पशु आहार के रूप में किया जाता है.
इस मांग के बाद ही सोयाबीन इंपोर्ट के कयास लगाए जा रहे हैं.
उपभोक्ताओं और किसानों दोनों का हित साधे सरकार: ठक्कर
अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर का कहना है कि देश के अंदर तिलहन का उत्पादन करने वाले सिर्फ 1.5 फीसदी है.
जबकि उसका तेल खाने वाले 98.5 फीसदी लोग हैं.
सरकार को यह तय करना होगा कि वो 1.5 फीसदी लोगों के हित के साथ है या फिर 98.5 फीसदी उपभोक्ताओं के साथ.
सोयाबीन का मार्केट रेट अब भी एमएसपी से काफी अधिक है.
इसलिए उपभोक्ताओं और किसानों दोनों के हितों में संतुलन रखते हुए कोई फैसला लेना चाहिए.
पहले भी अर्जेंटीना और ब्राजील से सोयाबीन आता रहा है.
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