सुरेंद्र पाचोटिया ने तय किया एच-4 कॉटन से हरिमन- 99 एप्पल का सफ़र
किसी दिन निमाड़ का अपना एप्पल होगा। ऐसा आत्मविश्वास खरगोन के एक किसान का है। जो लगभग 45 वर्षांे से खेती किसानी में जुटे हैं।
इनकी खेती किसानी में जॉइनिंग उस समय हुई जब एच-4 कॉटन किस्म (कपास) पहली-पहली बार निमाड़ में आई थी और इनके ही खेत में डेमो लगाया गया था।
तब से लेकर आज तक खरगोन में कसरावद के 8 वी पास 65 वर्षीय सुरेंद्र पाचोटिया ने अपनी खेती में अनेकों प्रयोग किये हैं।
तीन वर्ष पूर्व ऐसा ही एक प्रयोग निमाड़ में एप्पल की खेती का शुरू किया था। जो आज पूरी सम्भावनाओं के साथ सामने आ रहा है।
उनके खेत में लगाए गए 40 सेवफल के पौधों से 1 साल पहले ही फल पक चुके हैं।
अपने सफल प्रयोग से उत्साहित होकर सुरेंद्र पाचोटिया ने सेवफल के 200 नए पौधे लगाकर खेती प्रारम्भ कर दी है।
मूल रूप से गन्ने की खेती कर रहे सुरेंद्र अब इसके साथ अमरूद, गन्ने की विभिन्न किस्मों और सब्जियों की नर्सरी तैयार करने में समय ख़फ़ाते हैं।
फेसबुक से दक्षिण अमेरिका के सूरीनाम पहुँचा निमाड़ का सेवफल मिली सराहना
आज से लगभग एक साल पहले अपने सेवफल के पौधों से सुर्खलाल रंग के फल आये तो सुरेंद्र उत्साहित होकर अपनी फेसबुक पोस्ट कर दिया।
उनकी पोस्ट को दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के सूरीनाम देश में रहने वाले भारतीय मूल के नागरिक ने पसन्द करने के बाद उनकी सराहना की।
तब से सुरेंद्र ने ठान लिया कि किसी न किसी दिन निमाड़ का अपना एप्पल भी होगा। जिसकी खेती भी होगी और बाजार में भी पसंद किया जाएगा।
नरवाई जलाते नहीं, बनाते है उपयोगी जैविक खाद
मूल रूप से गन्ने की खेती करने वाले किसान सुरेंद्र ने 6 एकड़ में गन्ने की खेती करते हैं।
गन्ने में बड़ी संख्या में नरवाई निकलती है। जिसे किसान आग लगाकर राख बना देते हैं। लेकिन सुरेंद्र जी का जरा हटकर फंडा अपनाया है।
वे गन्ने के ठूठ बच जाते है और अगर गन्ने की दूसरी फसल लेना है तो गन्ना कटने के बाद बेड (गन्ने की बेड) के दोनों ओर कल्टीवेटर से जड़े खोल लेते है।
इससे मिट्टी ऊपर हो जाती है और दूसरी ओर मिट्टी नरवाई पर चढ़ जाती है।
फिर दो से तीन पानी और रोटावेटर चला देते है। गन्ना पकने से पहले जैविक खाद खेत में ही तैयार हो जाती है।
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