जानकारी के अनुसार राजस्थान राज्य से लगे कुछ जिलो नीमच, रतलाम एवं मंदसौर के कुछ गावों में टिड्डी दल के आक्रमण की सूचना प्राप्त हुई हैं, जो कि वर्तमान में उज्जैन जिले से होते हुये देवास जिले में प्रवेश कर चुकी है तथा इसके कही भी पहुँचने की संभावना है।
कृषि विज्ञान केंद्र झाबुआ के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. आई. एस. तोमर ने इससे बचाव के लिए किसान भाइयों को सतर्क रहने की सलाह देते हुए बताया है कि टिड्डियां बड़ी संख्या में एक साथ आती हैं, दिन में उड़ती हैं तथा रात में बैठती हैं किसान भाई टिड्डियों के आक्रमण की शुरुआत में ही ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से कर्कस आवाज कर अपने खेतों में टिड्डियों को न बैठने दे एवं रात में प्रकाश प्रपंच लगाकर टिड्डियों को एकत्र कर नष्ट करें।
साथ ही रात में अपने खेतों में टिड्डियों को झुण्ड में बैठे देखें तो रात में ही अपने खेतो में कल्टीवेटर या रोटावेटर चलाकर खेतो में बैठे टिड्डियों एवं इनके अण्डों को नष्ट करें साथ ही कल्टीवेटर के पीछे खंभा, लोहे का पाइप या कोई ऐसी वस्तु बांध के चलाये जिससे पीछे की भूमि वापस समतल हो जाये तथा टिड्डी दल उसमें दबने से मर जाये।
इसके साथ इसकी जानकारी तुरंत जिला प्रशासन को दे।
टिड्डी का तीब्र आक्रमण होने पर इसके नियंत्रण के लिए
बेन्डियोकार्ब 80 प्रतिशत 125 ग्राम या क्लोरपाइरीफास 20 ईसी 1200 मिली. या क्लोरपाइरीफास 50 ईसी 480 मिली. या डेल्टामेथ्रिन 1.25 प्रतिशत यूएलव्ही 1400 मिली. या डेल्टामेथ्रिन 2.8 प्रतिशत यूएलव्ही 625 मिली. या डाईफ्लुबेनज्यूरोन 25 प्रतिशत डब्ल्यूपी 120 ग्राम या लेम्डासाईहेलोथ्रिन 5 ईसी 400 मिली. या लेम्डासाईहेलोथ्रिन 10 प्रतिशत डब्ल्यूपी 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर कीटनाशक का उपयोग किया जा सकता है।
अकृषि क्षेत्र में टिड्डी कीट नियंत्रण के लि, उपरोक्त कीटनाशको के अलावा फेनवेलेरेट 0.4 प्रतिशत डी.पी. 25 कि.ग्रा. या क्वीनालफास 1.5 प्रतिशत डी.पी. 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।
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