गेहूं की बुआई छिड़काव पद्धति से न करें
कृषि विज्ञान केन्द्र आगर के वैज्ञानिकों ने जिले के कृषकों को रबी सीजन में गेहूं बुआई हेतु सलाह दी है कि गेहूं की बुआई में प्रति हैक्टेयर 100 किलोग्राम गेहूं का उपयोग करें।
बुआई के दौरान बीज का संतुलित मात्रा में उपयोग करने से उत्पादन अधिक होने के साथ ही रोग, कीट एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं में नुकसान की संभावना कम रहती है।
इन किस्मों की बुआई
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरपीएस शक्तावत ने बताया कि जिले में ज्यादातर किसान गेहूं की बुआई बीज का छिड़काव कर करते है, जिसमें 160 से 200 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर में उपयोग होता है।
जिससे गेहूं का उत्पादन कम होता है तथा रोग, कीट व प्राकृतिक आपदाओं में नुकसानी की संभावना भी बड़ जाती है।
उन्होंने किसानों से अपील की है कि गेहूँ की नई किस्मों जैसे एच. आई 1605 (पूसा उजाला), एच. आई 8759 (पूसा तेजस), एच. आई 1544 (पूर्णा), आर वी डब्ल्यू 4106, डी बी डब्ल्यू 110,एच. आई 8663 (पोषण), एच. आई 8713 (पूसा मंगल), एच. आई 8737 (पूसा अनमोल) की बुआई करें।
साथ ही रोगनाशक (मेन्कोजेब 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज), कीटनाशक (क्लोरोपायरीफॉस 5 मिली या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 1.25 मिली प्रति किलोग्राम बीज) एवं कल्चर (एजोटोबेक्टर 5 ग्राम व पी एस बी 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) का उपयोग करके बीजोपचार करें।
गेहूँ की बुआई लाईन में 9 इन्च की दूरी पर सीडड्रील द्वारा करें।
नई तकनीक फरो इरीगेटेड रेज्ड बेड विधि से बुआई कर कम पानी में अधिकतम उत्पादन लेवें।
इस पद्धति में केवल नाली में पानी देवे तथा क्यारी पर गेहूँ की बुआई करें।
इन खादों का प्रयोग करे
सिंचित अवस्था में गेहूँ के अधिकतम उत्पादन हेतु 120 किलो नत्रजन, 60 किलो फास्फोरस 40 किलो पोटास एवं 25 किलो जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की मात्रा का आकंलन करके प्रयोग करें। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय प्रयोग करें।
नत्रजन को यूरिया के रूप में दो भागों में बांटकर प्रथम सिंचाई (18 से 20 दिन बाद) एवं द्वितीय सिंचाई (35 से 40 दिन बाद) के समय भुरकाव करें।
गेहूँ की फसल के बढ़वार के लिये 6 सिंचाई क्राउन जड निकलते समय, कल्ले निकलते समय, गांठ बनते समय, गमोठ अवस्था में, दानो में दूध पडते समय तथा दाना पकते समय करें।
गेहूँ की फसल में प्रभावकारी खरपतवार नियंत्रण हेतु पेन्डीमिथालीन 30 प्रतिशत की 3.33 किलो प्रति हेक्टर का उपयोग बुआई के तुरंत बाद में तथा अंकुरण से पूर्व नमी वाली अवस्था में करें।
किट नियंत्रण
मौसम की प्रतिकूलता के कारण गेहूं फसल में जड़ माहू कीट का प्रकोप होता है। यह कीट हल्के पीले रंग से गहरे हरे रंग का होता है।
गेहूं के पौधों को जड़ से उखाडने पर ध्यानपूर्वक देखने से यह कीट आसानी से दिखाई देता है।
यह कीट गेहूं फसल में पौधों की जड़ों में से रस चूसता है जिसके कारण पौधा पीला पडने लगता है और धीरे-धीरे सूखने लगता है।
शुरूआत में खेतों में जगह-जगह पीले पडे हुए पौधे दिखाई देते हैं, बाद में पूरा खेत सूखने की संभावना रहती है।
इस कीट के प्रबंधन हेतु इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 70 मिली प्रति एकड दवा या एसेटाप्रिमिड 20 प्रतिशत एस.पी. 150 ग्राम प्रति एकड दवा या थायोमिथाक्जाम 25 प्रतिशत डब्ल्यू.जी. 50 ग्राम प्रति एकड दवा का 150 से 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें।
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