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सरकारी नौकरी नहीं मिली तो बन गए किसान

 

ऐसे बढ़ाई अपनी फसलों की कीमत

हो रही लाखों में कमाई

 

खेती को लेकर ज्यादातर लोगों के मन में अलग ही परसेप्शन बनी होती है. करियर के तौर पर ज्यादातर युवाओं को खेती अपनाने से गुरेज रहता है.

ज्यादातर युवा सरकारी नौकरी की तरफ भागते हैं. बरेली से 30 किलोमीटर दूर स्थि​त ग्रेम गांव के सर्वेश गंगवार की भी यही हसरत थी.

वे आर्मी में भर्ती होना चाहते थे. 3-4 बार प्रयास में सफल नहीं हो पाए और खेती की ओर रुख कर लिया. आज वे खेती से लाखों मेंं कमाई करते हैं.

 

सर्वेश गन्ना, सब्जियां और दलहन फसलें उगाते हैं. वे इनकी केवल खेती ही नहीं करते, बल्कि प्रोसेसिंग भी करते हैं.

सरकारी नौकरी की चाहत पूरी नहीं होने के बाद उन्होंने प्राइवेट नौकरी शुरू कर दी थी, लकिन वहां पैसे कम थे और मन भी नहीं लगा. फिर वे गांव लौट आए.

खेती के जरिये इबारत लिखने वाले किसानों के बारे में पढ़ा और सुना. और फिर इरादा बना लिया कि वे भी खेती ही करेंगे. आज उनकी गिनती जिले के प्रगतिशील किसानों में होती है.

 

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8 बीघा जमीन से शुरू की खेती

अब 36 बीघे में उगा रहे ढेरों चीज

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सर्वेश के पास खेती के लिए 36 बीघा जमीन थी. पिता ने 8 बीघा जमीन पर खेती करने की अनुमति दी. सर्वेश ने आधे में गन्ना और आधे में सब्जियां लगा दी.

करीब 10 हजार रुपये खर्च हुए. मेहनत की तो फसल अच्छी तैयार हुई. करीब 50 हजार रुपये का मुनाफा हुआ. उनका खुद पर भरोसा बढ़ा और घरवालों का सर्वेश पर. फिर क्या था, अगले साल से सर्वेश ने खेती का दायरा बढ़ा दिया.

 

वर्तमान में सर्वेश पूरी 36 बीघा जमीन पर खेती कर रहे हैं, जहां वे गन्ना और सब्जियों के अलावा गेहूं और दलहन फसलें उगाते हैं.

न्होंने अपने घर में मशरूम भी लगाया है. वे फसलों की प्रोसेसिंग कर के प्रॉडक्ट तैयार करते हैं और बाजार में सप्लाई करते हैं. इससे उनकी अच्छी कमाई हो जाती है.

 

किसान ऐसे बढ़ा सकते हैं अपनी फसल की कीमत

सर्वेश के मुताबिक, फूड प्रोसेसिंग के जरिये किसान अपनी फसल की कीमत बढ़ा सकते हैं. वे गन्ने से खुद ही गुड़ बनाते हैं.

मसूर, चना, अरहर वगैरह की दाल घर की चक्की में ही तैयार करते हैं. गेहूं से आटा भी हाथ वाली चक्की से तैयार करते हैं और सरसों के तेल की पेराई भी घर पर ही करते हैं.

ऐसे तैयार हुए इन तमाम प्रॉडक्ट्स की अच्छी कीमत मिल जाती है. सब्जियां भी उनके खेतों से ही बिक जाती है.

 

किसानों को प्रशिक्षण और महिलाओं को दिया रोजगार

सर्वेश के मुताबिक, अपने खेतों में वे केमिकल फर्टिलाइजर का इस्तेमाल नहीं करते. पराली को जलाने की बजाय, उससे खाद बना लेते हैं और ऑर्गेनिक खेती करते हैं.

शुरुआत में जहां वे नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से कुछ-कुछ सीखते थे, अब जिला कृषि विभाग उन्हें एक्सपर्ट के तौर पर बुलाता है.

उन्होंने किसानों को प्रशिक्षण भी दिया है और साथ ही कुछ महिलाओं को रोजगार भी मुहैया कराया है.

 

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