भारत खाद्य उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन चुका है।
अब देश में न केवल अपनी ज़रूरत का खाद्यान्न उत्पादन होता है, बल्कि इस क्षेत्र में एक मुख्य निर्यातक की भूमिका भी देश निभा रहा है।
आज भारत सरकार देश के लगभग 81 करोड़ गरीब व्यक्तियों को मुफ्त में अनाज उपलब्ध करा रही है और यह अनाज देश के किसानों से ही खरीदा जाता है।
ऐसे में यह जानना जरुरी है कि देश के विकास में कृषि क्षेत्र का योगदान क्या है।
भारत के GDP में कृषि एवं संबंधित क्षेत्र का योगदान
वैसे तो भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है, यानि की भारत के GDP में पहले सबसे अधिक योगदान कृषि क्षेत्र का था।
पर हैरानी की बात यह है कि देश जैसे-जैसे खाद्य उत्पादन मे आत्मनिर्भर बनता गया वैसे-वैसे जीडीपी में योगदान कम होता चला गया है।
इसका एक कारण देश की जनसंख्या में लगातार वृद्धि भी है।
इसका यह मतलब नहीं है कि उत्पादन में किसी प्रकार की कमी आई है बल्कि उत्पादन में लगातार नए रिकार्ड दर्ज किए जा रहे है।
देश की 54.6 प्रतिशत आबादी आज भी कृषि पर निर्भर है पर इसकी तुलना में GDP में योगदान बहुत कम है।
भारत के कितने क्षेत्र में होती है कृषि
भू-उपयोग सांख्यिकी 2018–19 के अनुसार देश का कुल भौगोलिक क्षेत्र 328.7 मिलियन हेक्टेयर है।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा लोकसभा में दिए गए एक जवाब के अनुसार वर्ष 2021-22 में 1,41,007 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में कुल बुआई की गई थी यानी फसल लगाई गई थी।
इसमें से 77,916 हजार हेक्टेयर भूमि सिंचित तथा 63091 हजार हेक्टेयर भूमि असिंचित क्षेत्र है।
वहीं कृषि मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2021-22 के दौरान खाद्यान्न का अनुमानित उत्पादन 315.72 मिलियन टन है जो वर्ष 2020-21 के मुकाबले 4.98 प्रतिशत अधिक है।
बता दें की कृषि एवं संबंधित क्षेत्र में विभिन्न फसलों के उत्पादन के साथ ही, बागवानी गतिविधियों, वानिकी, पशुपालन क्षेत्र की गतिविधियों जैसे दूध उत्पादन, मांस उतापदन, अंडा उत्पादन आदि को भी शामिल किया जाता है।
भारत दूध उत्पादन में भी आत्मनिर्भर बन गया है, दुनिया में सबसे अधिक दूध का उत्पादन भी भारत में ही होता है।
अभी दलहन एवं तिलहन क्षेत्र में भारत का आत्मनिर्भर बनना बाक़ी है अभी देश इनके आयात ओर निर्भर है।
सकल मूल्य वर्धन (GVA) और GDP क्या होता है?
जीवीए से किसी इकनॉमी में होने वाले टोटल आउटपुट और इनकम का पता चलता है।
GVA आपूर्ति पक्ष के संदर्भ में राष्ट्रीय आय की गणना करता है।
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार किसी क्षेत्र के GVA को आउटपुट के मूल्य में से मध्यवर्ती इनपुट के मूल्य को घटा कर प्राप्त मूल्य के रूप में परिभाषित किया जाता है।
यह “मूल्य वर्द्धन” उत्पादन, श्रम और पूँजी के प्राथमिक कारकों के बीच साझा किया जाता है।
वहीं बात की जाए सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की तो किसी देश की सीमाओं के भीतर एक विशिष्ट समय अवधि, आम तौर पर एक वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है।
यह राष्ट्र की समग्र आर्थिक गतिविधि का एक व्यापक माप है।
बता दें कि GDP और GVA का मुख्य आधार GVA डेटा होता है। GDP और GVA निम्नलिखित समीकरण द्वारा निकाला जाता है।
GDP = GVA + (सरकार द्वारा अर्जित कर) – (सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी)।
जैसे अगर सरकार द्वारा अर्जित कर उकसे द्वारा प्रदान की जाने वाली सब्सिडी से अधिक है तो सकल घरेलू उत्पाद GVA से अधिक होता है।
वर्ष 1960-61 के समय कृषि एवं संबंधित क्षेत्र की जीवीए में हिस्सेदारी
देश में वर्ष 1960-61 में कुल सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में कृषि का योगदान 57 प्रतिशत था तथा इस दौरान कृषि एवं संबंधित क्षेत्र की जीवीए की वृद्धि दर 6.74 प्रतिशत थी।
लेकिन एक वर्ष बाद ही जीवीए में 2 प्रतिशत की कमी आ जाती है तथा वृद्धि दर घटकर 0.08 प्रतिशत रह जाती है।
इसके अगले वर्ष फिर से 2 प्रतिशत की कमी आती है और जीवीए घटकर 53 प्रतिशत हो जाता है जबकि वृद्धि दर निगेटिव (-1.99) में चली जाती है। यहाँ दो बातें ध्यान देने योग्य है।
इस वर्ष भारत और चीन का युद्ध चल रहा था तथा इन वर्षों में देश सूखे का सामना कर रहा था।
जीवीए में कमी आना वर्ष 1963–64 तक जारी रहा, इस वर्ष जीवीए में कृषि का योगदान 51 प्रतिशत रह जाता है लेकिन वृद्धि दर में सुधार होता है, और यह बढ़कर 2.34 प्रतिशत हो जाती है।
वर्ष 2022-23 मे कृषि का योगदान जीवीए में मात्र 15 प्रतिशत रह गया है तथा विकास दर 3.96 प्रतिशत तक है।
वहीं 2021-22 में यह 16 प्रतिशत था जबकि विकास दर 3.51 प्रतिशत थी।
ऐसे तो वर्ष 2015–16 से ही देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान लगभग 15 प्रतिशत तक पहुँच गया था जो अब तक जारी है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार पिछले पाँच वर्षों के दौरान कृषि और संबंधित क्षेत्र के GVA में 4 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर के साथ बढ़ोतरी हुई है।